Up Kiran, Digital Desk: असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने हाल ही में एक बड़ा दावा किया है। उन्होंने कहा कि बंगाली मूल के मुसलमान, जिन्हें आम तौर पर मिया मुसलमान कहा जाता है, अगली जनगणना में राज्य की कुल जनसंख्या का लगभग 38% हो सकते हैं।
डिब्रूगढ़ में पत्रकारों से बात करते हुए सरमा ने कहा कि जब जनगणना के नतीजे आएँगे, तो मिया मुसलमान सबसे बड़ा समुदाय बन चुके होंगे। यही असम की वर्तमान सच्चाई है।
क्या तीन दशक पहले बदला जा सकता था भविष्य?
सीएम ने अफसोस जताते हुए कहा कि यदि 30 साल पहले ही जनसंख्या नियंत्रण या प्रवास रोकने के लिए ठोस कदम उठाए गए होते, तो असम का जनसांख्यिकीय नक्शा आज कुछ और होता।
जाति, माटी और भेटी की रक्षा के लिए कानून
सरमा ने ऐलान किया कि अगले विधानसभा सत्र में दो अहम कानून लाए जाएंगे। ये कानून असम की ज़मीन, समुदाय और घरों की सुरक्षा के लिए होंगे। हालांकि उन्होंने कानूनों के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दी, लेकिन इतना साफ किया कि यह कदम स्थानीय लोगों की रक्षा के लिए जरूरी हैं।
“हमें मियाओं पर दबाव बनाए रखना होगा”
मुख्यमंत्री ने कहा कि जनसांख्यिकीय संतुलन बनाए रखने के लिए "मियाओं पर दबाव" जरूरी है। उनके मुताबिक अगर ये दबाव जारी रहा, तो स्थिति धीरे-धीरे बेहतर होगी।
मिया शब्द और उसका इतिहास
'मिया' शब्द को असम में लंबे समय से अपमानजनक रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है, खासकर उन मुसलमानों के लिए जो बंगाली भाषा बोलते हैं। कई बार इन्हें बांग्लादेश से अवैध प्रवासियों के रूप में देखा जाता है। लेकिन अब यह शब्द खुद समुदाय द्वारा पहचान के रूप में अपनाया जा रहा है।
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