
Up Kiran, Digital Desk: आज भी हमारे देश के छोटे-छोटे शहरों और गांवों में यह सिर्फ़ एक सरकारी दफ्तर नहीं, बल्कि भरोसे का दूसरा नाम है। लोग अपनी ज़िंदगी भर की गाढ़ी कमाई यह सोचकर वहाँ जमा करते हैं कि उनका पैसा सुरक्षित हाथों में है। लेकिन क्या हो, जब वही हाथ उनके साथ धोखा कर दें, जिनका काम उनकी सुरक्षा करना था?
मध्य प्रदेश से एक ऐसी ही कहानी सामने आई है, जहाँ अदालत ने सालों बाद ही सही, पर इंसाफ़ किया है और जनता के भरोसे को तोड़ने वाले को उसकी सही सज़ा दी है।
क्या था यह पूरा मामला: यह कहानी है मध्य प्रदेश के सागर जिले के एक छोटे से डाकघर में काम करने वाले एक कर्मचारी, कुलदीप आठ्या की। कुलदीप का काम था डाकघर की अलग-अलग बचत योजनाओं में लोगों का पैसा जमा करना। लेकिन उसने अपने पद का गलत फायदा उठाया।
उसने डाकघर में पैसा जमा करने आए भोले-भाले लोगों के साथ धोखाधड़ी की। उसने नकली रसीदें बनाईं और उनके जमा किए गए पैसे को सरकारी खाते में डालने के बजाय, चुपचाप अपनी जेब में रख लिया। यह छोटा-छोटा घोटाला करते-करते उसने कुल मिलाकर 7 लाख रुपये से भी ज़्यादा की हेराफेरी कर डाली। यह उन गरीबों का पैसा था, जिन्होंने शायद पाई-पाई जोड़कर भविष्य के लिए यह बचत की थी।
कानून के हाथ लंबे होते है: धोखाधड़ी ज़्यादा दिन तक छिप नहीं सकी और मामला खुल गया। देश की सबसे बड़ी जांच एजेंसी, CBI, ने इस मामले की गहराई से जांच की। जांच में कुलदीप के खिलाफ इतने मज़बूत सबूत मिले कि उसके बचने का कोई रास्ता नहीं था।
अब, इतने सालों बाद CBI की स्पेशल कोर्ट ने इस मामले में अपना फैसला सुनाया है।
अदालत ने कुलदीप आठ्या को इस धोखाधड़ी और जनता के साथ विश्वासघात करने का दोषी पाया और उसे 5 साल की सश्रम कारावास (यानी जेल में काम भी करना होगा) की सज़ा सुनाई। साथ ही, उस पर 80,000 रुपये का जुर्माना भी लगाया गया।
यह फैसला सिर्फ़ एक धोखेबाज़ कर्मचारी को मिली सज़ा नहीं है। यह हर उस सरकारी कर्मचारी के लिए एक बड़ी चेतावनी है, जो यह सोचता है कि वह जनता के भरोसे और उनके पैसे के साथ खिलवाड़ करके आसानी से बच निकलेगा। और यह उन लाखों लोगों के भरोसे को फिर से मज़बूत करता है, जो आज भी मानते हैं कि देर से ही सही, पर इंसाफ़ होता ज़रूर है।