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Up Kiran, Digital Desk: उत्तर प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस पार्टी के लिए प्रियंका वाड्रा की भूमिका अब धीरे-धीरे फीकी पड़ती नजर आ रही है। जो पहले यूपी कांग्रेस के प्रभारी के तौर पर पार्टी की कमान संभालती थीं, अब उनके सियासी प्रभाव में कमी आई है, जिसका असर कार्यकर्ता और नेता दोनों पर दिखाई दे रहा है। आइए देखें कि इस बदलाव के पीछे क्या कारण हो सकते हैं और इसका पार्टी पर क्या प्रभाव पड़ रहा है।

2017 से 2022 तक यूपी कांग्रेस में प्रियंका वाड्रा की सक्रियता और नेतृत्व महत्वपूर्ण था। उस वक्त कांग्रेस संगठन की दिशा-निर्देश और रणनीतियां उनके नियंत्रण में थीं। हालांकि, चुनाव परिणामों ने कांग्रेस को वो सफलता नहीं दिलाई जिसकी उम्मीद थी। 2017 के आम चुनाव में कांग्रेस को यूपी की 403 सीटों में से मात्र 7 सीटें मिलीं, जबकि वोट प्रतिशत भी करीब 6.5 फीसदी तक सीमित रहा। उस वक्त कांग्रेस ने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन किया था, लेकिन दोनों पार्टियों की प्रदर्शन उम्मीदों से कम रहा।

प्रियंका को दक्षिण भारत की वायनाड सीट से सांसद बनाया गया, जो कांग्रेस के यूपी में कमज़ोर प्रदर्शन का संकेत था। इसके बावजूद पार्टी ने यूपी में गठबंधन की रणनीति जारी रखी, लेकिन 2022 के चुनावों में भी भाजपा के खिलाफ सपा-कांग्रेस गठबंधन को कोई खास फायदा नहीं हुआ और योगी आदित्यनाथ की सरकार फिर से मजबूत हुई।

पार्टी संगठन में भी प्रियंका के आस-पास के कुछ नेताओं के कारण विवाद उभरे। उनके राजनीतिक सलाहकार संदीप सिंह के हस्तक्षेप से कई वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं ने पार्टी छोड़ दी, जिससे संगठन कमजोर हुआ। जनाधार वाले नेताओं का पक्ष कमजोर पड़ा और साइडलाइन हो गए। इसके अलावा प्रदेश अध्यक्ष पद पर बार-बार बदलाव हुए, लेकिन संगठन को मजबूती देने में सफलता नहीं मिली। सड़क स्तर पर भी कांग्रेस की पकड़ कमजोर दिखी, जहां पार्टी के झंडाबरदार भी कम नजर आए।

प्रियंका वाड्रा को पार्टी के अंदर तेजतर्रार और सक्रिय नेता माना जाता है, खासकर कार्यकर्ता उनके नेतृत्व को पसंद करते हैं। लेकिन राहुल गांधी के सख्त प्रोटोकॉल के कारण आम कार्यकर्ताओं और नेताओं को उनसे संपर्क करना मुश्किल हो जाता है। कई बड़े नेताओं का मानना है कि प्रियंका राहुल गांधी से ज्यादा प्रभावशाली हैं, लेकिन संगठन में उनकी छवि को वह मजबूती नहीं मिल पाई जो अपेक्षित थी।

कुल मिलाकर, प्रियंका वाड्रा की यूपी कांग्रेस में घटती सक्रियता और संगठन में आए बदलाव ने पार्टी की स्थिति पर गहरा प्रभाव डाला है। पार्टी के लिए अब जरूरी है कि वह अपनी रणनीतियों को नए सिरे से परखें और कार्यकर्ताओं के बीच विश्वास वापस लाने की कोशिश करें, ताकि यूपी की राजनीति में फिर से प्रभावी भूमिका निभा सकें।

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