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Up Kiran, Digital News: आप एक ऐसे रास्ते पर हैं जो बादलों के ऊपर से गुजरता है। हवा में बर्फ की खुशबू है हर सांस में रोमांच है और चारों ओर पहाड़ों का अद्भुत नज़ारा फैला हुआ है। ये कोई फैंटेसी ट्रिप नहीं बल्कि अब भारत की हकीकत है। जी हाँ भारत ने पाकिस्तान को पछाड़ते हुए दुनिया की सबसे ऊँची मोटरेबल रोड का ताज अपने नाम कर लिया है। और ये सिर्फ एक सड़क नहीं है ये साहस तकनीक और जज्बे का प्रतीक है।
कौन सी है ये रिकॉर्ड तोड़ सड़क
चिशुम्ले से डेमचोक तक फैली ये सड़क 52 किलोमीटर लंबी है और लद्दाख में स्थित है। यह सड़क उम्लिंग ला पास से होकर गुजरती है जिसकी ऊँचाई है 19024 फीट — यानी एवरेस्ट बेस कैंप से भी ऊपर! इससे पहले पाकिस्तान के खुनजेराब पास (15397 फीट) और बोलिविया की सड़क इस रिकॉर्ड के दावेदार थे लेकिन अब भारत ने उन्हें पीछे छोड़ दिया है।
कैसे बनी ये 'सपनों की सड़क
यह काम आसान नहीं था। इतनी ऊँचाई पर मशीनें पहुंचाना उन्हें चलाना और मजदूरों को जिंदा और स्वस्थ रखना — एक युद्ध जैसा अनुभव था।
ब्रिगेडियर डी.एम. पूर्वीमठ जो इस प्रोजेक्ट के चीफ इंजीनियर थे बताते हैं कि यहाँ गर्मियों में तापमान -10°C से -20°C रहता है और सर्दियों में -40°C तक चला जाता है। ऑक्सीजन का स्तर सामान्य क्षेत्रों से 50% कम होता है। मशीन ऑपरेटर्स को हर 10 मिनट बाद नीचे उतरकर ऑक्सीजन लेनी पड़ती थी।
इस प्रोजेक्ट को BRO (Border Roads Organisation) ने अगस्त 2021 में पूरा किया और 29 दिसंबर 2021 को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इसका उद्घाटन किया।
क्यों है ये रोड खास
गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज — अब दुनिया की सबसे ऊँची मोटरेबल रोड के तौर पर।
स्ट्रैटेजिक लोकेशन — यह भारत-चीन सीमा के पास LAC के साथ लगती है जिससे भारत की सामरिक ताकत को मजबूती मिलती है।
पर्यटन को बढ़ावा — रोड ट्रिप लवर्स और एडवेंचर ट्रैवलर्स के लिए यह डेस्टिनेशन अब ड्रीम ट्रिप बन गया है।
लोकल कनेक्टिविटी — लद्दाख के ग्रामीण क्षेत्रों को मुख्यधारा से जोड़ती है जिससे स्थानीय लोगों को भी लाभ होगा।
पाकिस्तान को मिला करारा जवाब
भारत और पाकिस्तान के बीच जब-जब सीमा पर तनाव बढ़ता है दोनों देश अपनी ताकत का प्रदर्शन अलग-अलग तरीकों से करते हैं। इस बार भारत ने शब्दों से नहीं सड़क से जवाब दिया है।
खुनजेराब पास के जरिए पाकिस्तान पिछले कई वर्षों से अपने इस 'सबसे ऊँची मोटरेबल रोड' वाले रिकॉर्ड पर गर्व करता रहा लेकिन अब यह गौरव भारत के पास है।
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