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हिमाचल प्रदेश की मौजूदा सरकार को एक बार फिर प्रशासनिक नियंत्रण के अभाव को लेकर आलोचना का सामना करना पड़ रहा है। इस बार राज्य के मुख्य सचिव प्रबोध सक्सेना की होली पार्टी को लेकर विवाद खड़ा हुआ है, जिसमें उन्होंने अपनी रिटायरमेंट पार्टी का खर्चा सरकार के मत्थे डाल दिया।

प्रबोध सक्सेना को 31 मार्च को रिटायर होना था, लेकिन सरकार ने उन्हें छह महीने का सेवा विस्तार दे दिया। इससे पहले, 14 मार्च को उन्होंने एक होटल में अफसरों और उनके परिवारों के लिए पार्टी रखी थी। अब इस आयोजन का 1.22 लाख रुपये का बिल सरकार को भेजा गया है।

सरकारी धन से पार्टी?

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, यह पार्टी शिमला के एक सरकारी होटल ‘हॉलिडे होम’ में आयोजित की गई थी। इसमें वरिष्ठ आईएएस अधिकारियों और उनके परिवारों के लिए भोज का आयोजन किया गया, जिसमें प्रति व्यक्ति 1,000 रुपये की दर से 77 लोगों को खाना परोसा गया। इसके अलावा 22 ड्राइवरों के भोजन पर 585 रुपये प्रति व्यक्ति खर्च हुए, टैक्सी का किराया और कर मिलाकर कुल बिल 1.22 लाख रुपये पहुंच गया। अब यह बिल सामान्य प्रशासन विभाग को भुगतान के लिए भेजा गया है।

हालांकि विभाग के सचिव राजेश शर्मा का कहना है कि अंतिम प्राधिकरण के निर्देशानुसार ही बिल का भुगतान किया जाएगा। सार्वजनिक रूप से इस पर किसी अधिकारी ने टिप्पणी नहीं की है, जिससे पारदर्शिता पर सवाल उठ रहे हैं।

पुराना इतिहास भी रहा है विवादों से भरा

यह कोई पहला मामला नहीं है जब हिमाचल प्रदेश के अफसरों पर सार्वजनिक धन के दुरुपयोग का आरोप लगा हो। इससे पहले, राज्य के पूर्व मुख्य सचिव और रेरा (रियल एस्टेट विनियामक प्राधिकरण) के पूर्व अध्यक्ष श्रीकांत बाल्दी पर आरोप लगा था कि उन्होंने विभिन्न राज्यों के अधिकारियों को सेब की पेटियां उपहार में देने के लिए रेरा के फंड का इस्तेमाल किया।

आरटीआई से प्राप्त जानकारी के अनुसार, उन्होंने एचपीएमसी से 44,100 रुपये की लागत से 49 सेब की पेटियां खरीदीं और 2022 में इनका वितरण किया। पूर्व उप महाधिवक्ता विनय शर्मा ने इस मामले में सतर्कता ब्यूरो में शिकायत दर्ज कर एफआईआर की मांग की थी, लेकिन अब तक किसी जांच का परिणाम सार्वजनिक नहीं हुआ।

राजनीतिक प्रतिक्रिया: विपक्ष ने खोला मोर्चा

इस घटना को लेकर विपक्ष भी सक्रिय हो गया है। भाजपा विधायक और पूर्व मंत्री बिक्रम ठाकुर ने मुख्य सचिव द्वारा सरकारी पैसे से पार्टी देने को “लोकतांत्रिक मूल्यों और प्रशासनिक शिष्टाचार का घोर उल्लंघन” बताया। उन्होंने इस मामले की निष्पक्ष जांच और दोषियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की है।

ठाकुर ने यह भी कहा कि हिमाचल प्रदेश पहले ही भारी कर्ज में डूबा है और ऐसे समय में इस तरह का व्यवहार न केवल गैर-जिम्मेदाराना है, बल्कि केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियमों का सीधा उल्लंघन भी है।

सीएम के समोसे विवाद की याद

यह पहली बार नहीं है जब हिमाचल सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठे हैं। पिछले साल 21 अक्टूबर को मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के लिए लाए गए समोसे और केक उनके सुरक्षाकर्मियों में बांट दिए गए थे। बाद में जांच में पाया गया कि ये विशेष रूप से मुख्यमंत्री के लिए मंगवाए गए थे। इसके चलते पांच पुलिसकर्मियों को नोटिस भी जारी किया गया था।

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