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Up Kiran, Digital Desk: कुछ फिल्में ऐसी होती हैं जो अपने पहले ही पार्ट में दर्शकों के दिलों में ऐसी छाप छोड़ती हैं कि अगली कड़ी को लेकर उम्मीदें खुद-ब-खुद काफी ऊंची हो जाती हैं। ‘रेड’ (2018) एक ऐसी ही फिल्म थी—कहानी, अभिनय, निर्देशन, और संवाद, हर पहलू में यह एक यादगार अनुभव थी। और जब इसका दूसरा भाग ‘रेड 2’ अजय देवगन के साथ आया, तो दर्शकों की उम्मीदें भी आकाश छू रही थीं।

लेकिन क्या ये फिल्म उन उम्मीदों पर खरी उतरी? खैर, पूरी तरह से नहीं।

 कहानी: जब अमय पटनायक के सामने खड़ा होता है एक नया, खतरनाक प्रतिद्वंदी

फिल्म की कहानी एक बार फिर केंद्र में रखती है अमय पटनायक (अजय देवगन), जो एक ईमानदार और बहादुर आईआरएस अफसर हैं। इस बार उनकी लड़ाई सिर्फ भ्रष्टाचार से नहीं, बल्कि एक बेहद ताकतवर और शातिर प्रतिद्वंदी से है—दादा मनोहर भाई, जिसे निभाया है रितेश देशमुख ने।

कहानी उस वक्त दिलचस्प बनती है जब अमय पर खुद भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं। लगातार ट्रांसफर झेलने के बाद भी वह पीछे नहीं हटते और अपने 75वें और अब तक के सबसे जटिल केस की जांच में जुट जाते हैं। यहां उसकी भिड़ंत होती है सत्ता, पैसे और डर के गठजोड़ से।

जहां पहला भाग रियलिज्म और लॉजिक पर आधारित था, वहीं यह भाग ज्यादा ड्रामा, पॉलिटिकल टर्न्स और इमोशनल पेंच लेकर आता है। कहानी में कई मोड़ हैं, लेकिन वे देर से आते हैं। जब तक दर्शक पूरी तरह जुड़ें, कहानी पहले ही धीमी हो चुकी होती है।

 अभिनय: रितेश देशमुख बने फिल्म की जान, अजय हमेशा की तरह सधे हुए

IRS अफसर अमय पटनायक के रूप में अजय देवगन ने एक बार फिर ये साबित कर दिया कि यह रोल उन्हीं के लिए बना है। उनका संयमित अभिनय, डायलॉग डिलिवरी और दृढ़ता वाला हावभाव हर सीन में दर्शकों को याद दिलाता है कि ‘रेड’ क्यों क्लासिक बनी थी।

फिल्म की सबसे बड़ी सरप्राइज पैकेज हैं रितेश देशमुख, जो आमतौर पर कॉमेडी और रोमांटिक किरदारों में नजर आते हैं। इस बार वो खतरनाक और चालाक विलेन दादा मनोहर भाई के किरदार में नजर आते हैं और उन्होंने इस रोल को जिस शिद्दत से निभाया है, वो काबिल-ए-तारीफ है। उनके चेहरे की शांति और बातों की धमक डर पैदा करती है।

वाणी कपूर, सुप्रिया पाठक और सौरभ शुक्ला

वाणी कपूर की भूमिका सीमित है, लेकिन उन्होंने अपनी मौजूदगी दर्ज कराई है।
सुप्रिया पाठक को मजबूत रोल दिया गया, लेकिन ओवरएक्टिंग ने उनकी परफॉर्मेंस का प्रभाव कम कर दिया।
सौरभ शुक्ला हमेशा की तरह स्क्रीन पर आते ही रंग जमा देते हैं, हालांकि इस बार वह साइड रोल में हैं।
अमित सियाल, जिन्होंने अमय के सहयोगी का किरदार निभाया है, वो पूरी फिल्म में चमकते हैं और एक महत्वपूर्ण मोड़ भी उन्हीं से जुड़ा है।

 निर्देशन और तकनीकी पक्ष: राज कुमार गुप्ता की पकड़ इस बार ढीली

राज कुमार गुप्ता जिन्होंने पहली ‘रेड’ को एक इमोशनल, रियलिस्टिक और थ्रिलिंग अनुभव में बदला था, वह इस बार उस जादू को दोहराने में असफल रहे हैं।

पहला हाफ काफी धीमा है

गाने कहानी की रफ्तार रोकते हैं

एडिटिंग ढीली है, कई दृश्य अनावश्यक लगते हैं

थ्रिल एलिमेंट बीच-बीच में आता है, लेकिन बहुत देर से

अगर स्क्रिप्ट को थोड़ा टाइट किया जाता और शुरुआत में ही ग्रिप बना ली जाती, तो यह फिल्म दर्शकों को पहले भाग की तरह बांध सकती थी।

देखने लायक:

अजय देवगन की परफॉर्मेंस

रितेश देशमुख का विलेन अवतार

कुछ इमोशनल और तीव्र दृश्य

भ्रष्टाचार और सत्ता के खेल पर फोकस

छोड़ने लायक:

ढीली स्क्रिप्ट

कहानी की धीमी शुरुआत

कुछ अनावश्यक गाने

ओवरड्रामा और अतिरिक्त भावनात्मक दृश्यों की भरमार

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