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Up Kiran, Digital Desk: रावण, लंका का राजा और रामायण का एक प्रमुख पात्र, दशहरा के समय चर्चा का केंद्र बन जाता है। पर क्या कभी आपने सोचा है कि उसके दस सिर का असली मतलब क्या था? क्या ये वास्तव में मौजूद थे या फिर किसी गहरी सोच का प्रतीक थे? आज की पीढ़ी के लिए यह सवाल केवल पौराणिक नहीं, बल्कि मनोवैज्ञानिक और सामाजिक सोच से भी जुड़ा हुआ है।
दस सिर: कल्पना या गहराई से भरा संकेत?
अनेक विद्वानों और धार्मिक ग्रंथों में रावण के दस सिर को लेकर अलग-अलग बातें कही गई हैं। एक ओर यह विचार है कि रावण के दस सिर वास्तविक नहीं थे, बल्कि उसका विशाल ज्ञान और शक्ति दिखाने का एक तरीका थे। वह चारों वेद और छह दर्शनों का ज्ञाता था, इसीलिए वह 'दशानन' कहलाया।
दूसरी ओर कुछ लोग मानते हैं कि यह दस सिर मानवीय कमजोरियों और आंतरिक संघर्षों के प्रतीक थे – एक ऐसी सोच जो आज के समय में भी पूरी तरह प्रासंगिक है।
हर सिर छुपाता है एक मानवीय कमजोरी
रावण की छवि केवल राक्षसी प्रवृत्तियों की नहीं, बल्कि मानव मन के भीतर छुपी उन दस नकारात्मक शक्तियों की पहचान है, जो अगर नियंत्रण से बाहर हो जाएं तो विनाश की ओर ले जाती हैं। ये दस प्रवृत्तियां निम्नलिखित हैं:
वासना – इच्छाओं पर नियंत्रण न होना
गुस्सा – जल्दबाज़ी में प्रतिक्रिया देना
लोभ – न खत्म होने वाली लालच
मोह – दुनियावी आकर्षण में उलझना
अहंकार – खुद को सर्वोच्च मानना
ईर्ष्या – दूसरों से तुलना कर दुखी होना
अविवेकपूर्ण इच्छाएं – नैतिकता को नजरअंदाज़ करना
भ्रष्ट व्यवहार – अपने स्वार्थ के लिए नियम तोड़ना
अनैतिक सोच – धर्म और समाज के प्रति बेपरवाही
घमंड – शक्ति या ज्ञान का दिखावा
इन दस दोषों के प्रतीक रूप में रावण को देखा जाए तो यह संदेश मिलता है कि इंसान अगर इन पर काबू न रखे तो कितना भी ज्ञानी या शक्तिशाली हो, पतन निश्चित है।