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Up Kiran, Digital Desk: कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और प्रख्यात वक्ता शशि थरूर एक बार फिर अपने एक ट्वीट को लेकर पार्टी के भीतर नई बहस और असहजता का कारण बन गए हैं। हाल ही में उनके 'भारत की बात' वाले बयान ने राजनीतिक गलियारों में हलचल मचा दी है, और इससे कांग्रेस के भीतर की अंदरूनी खींचतान फिर से सामने आ गई है।

थरूर का यह बयान ऐसे समय में आया है जब कांग्रेस पहले से ही अपने आंतरिक लोकतंत्र और नेताओं की स्वतंत्र अभिव्यक्ति को लेकर चुनौतियों का सामना कर रही है। उन्हें अक्सर पार्टी की 'आधिकारिक' लाइन से हटकर राय रखने वाले नेताओं में गिना जाता है, और अतीत में भी उनके कुछ विचारों ने पार्टी को असहज किया है। वे उन 'जी-23' नेताओं में से एक हैं, जिन्होंने पार्टी में व्यापक सुधारों की वकालत की है। उनकी यह स्वतंत्र सोच अक्सर पार्टी के लिए दुविधा पैदा करती है।

मनीष तिवारी के हालिया 'भारत की बात सुनाता हूं' वाले गूढ़ पोस्ट के बाद, थरूर का यह बयान पार्टी के अंदर एक और प्रतिध्वनि की तरह है। हालांकि थरूर ने सीधे तौर पर किसी पार्टी नीति की आलोचना नहीं की, लेकिन उनका 'भारत की बात' कहना कुछ लोगों द्वारा 'पार्टी की बात' से अलग देखा गया, जो कांग्रेस के लिए एक एकीकृत और स्पष्ट संदेश बनाए रखने में चुनौती बन जाता है।

कांग्रेस नेतृत्व अक्सर यह सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि उसके प्रवक्ताओं और वरिष्ठ नेताओं द्वारा दिए गए बयान पार्टी की स्थापित विचारधारा और रणनीति के अनुरूप हों। संवेदनशील राष्ट्रीय मुद्दों पर, पार्टी किसी भी तरह के 'भ्रम' या 'विपरीत विचारों' से बचना चाहती है। ऐसे में शशि थरूर जैसे मुखर और स्वतंत्र विचारों वाले नेताओं के बयान पार्टी के लिए संतुलन बनाना मुश्किल कर देते हैं।

यह घटना एक बार फिर कांग्रेस के भीतर 'विचारों की स्वतंत्रता' और 'पार्टी अनुशासन' के बीच के तनाव को उजागर करती है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस अपने वरिष्ठ नेताओं की स्वतंत्र आवाज़ों को कैसे संतुलित करती है, खासकर जब राष्ट्रीय विमर्श और चुनाव नजदीक हों।

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