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Up Kiran, Digital Desk: स्वास्थ्य जगत से एक बेहद चिंताजनक खबर सामने आई है। एक नए और महत्वपूर्ण अध्ययन ने चेतावनी दी है कि साल 2008 से 2017 के बीच जन्मे 1.5 करोड़ (15 मिलियन) से ज़्यादा लोगों को भविष्य में गैस्ट्रिक कैंसर (पेट का कैंसर) होने का गंभीर खतरा हो सकता है। यह चेतावनी उन माता-पिता और स्वास्थ्य विशेषज्ञों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जिनके लिए इस आयु वर्ग के बच्चों का स्वास्थ्य एक प्राथमिकता है।

परंपरागत रूप से, पेट का कैंसर ज़्यादातर वृद्ध लोगों को प्रभावित करता था, लेकिन पिछले कुछ दशकों में युवा आबादी में इसके मामले बढ़ने का एक नया और परेशान करने वाला पैटर्न देखा गया है। यह नया शोध इसी उभरते हुए रुझान पर प्रकाश डालता है और बताता है कि कैसे एक पूरा दशक, जिसमें जन्मे लोग अब किशोरावस्था या युवा वयस्कता की ओर बढ़ रहे हैं, एक गंभीर स्वास्थ्य जोखिम का सामना कर सकते हैं।

अध्ययन में इन आंकड़ों के पीछे के सटीक कारणों का विस्तार से उल्लेख नहीं किया गया है, लेकिन यह इस बात पर ज़ोर देता है कि युवा पीढ़ी में पेट के कैंसर के बढ़ते मामलों की प्रवृत्ति को नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता। विशेषज्ञ मानते हैं कि जीवनशैली में बदलाव, आहार संबंधी आदतें (जैसे प्रोसेस्ड फूड का अधिक सेवन), पर्यावरणीय कारक और यहां तक कि कुछ आनुवंशिक प्रवृत्तियाँ भी इस बढ़ते जोखिम में भूमिका निभा सकती हैं।

इस चेतावनी का क्या मतलब है?

इस चेतावनी का यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि हर बच्चा जिसे इस अवधि में जन्म हुआ है, उसे कैंसर होगा ही। बल्कि, यह एक 'रेड फ्लैग' है – एक संकेत है कि हमें जागरूक होने और एहतियाती कदम उठाने की ज़रूरत है।

जागरूकता बढ़ाएँ: माता-पिता और युवा वयस्कों को पेट के कैंसर के लक्षणों के बारे में पता होना चाहिए। लगातार पेट दर्द, अपच, भूख न लगना, बिना वजह वजन कम होना, या मल में खून आना जैसे लक्षण दिखने पर तुरंत डॉक्टर से सलाह लें।

स्वस्थ जीवनशैली: बचपन से ही स्वस्थ आहार (ताज़े फल, सब्ज़ियां, साबुत अनाज) और नियमित शारीरिक गतिविधि पर जोर देना महत्वपूर्ण है। प्रोसेस्ड फूड, अत्यधिक चीनी और वसा वाले भोजन से बचें।

नियमित जाँच: विशेष रूप से जोखिम वाले समूहों के लिए नियमित स्वास्थ्य जांच और डॉक्टर की सलाह पर गैस्ट्रिक कैंसर की स्क्रीनिंग पर विचार किया जा सकता है।

अधिक शोध: यह अध्ययन भविष्य के व्यापक शोधों के लिए एक आधार प्रदान करता है, ताकि इन जोखिमों को बेहतर ढंग से समझा जा सके और रोकथाम व उपचार के प्रभावी तरीके खोजे जा सकें।

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