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Up Kiran, Digital Desk: क्या आप भी सिनेमा के उन सुनहरे पलों को फिर से जीना चाहते हैं, जो आज भी भारतीय फिल्मों का मील का पत्थर बने हुए हैं? तो सिनेमा प्रेमियों के लिए एक बेहद रोमांचक खबर आई है! भारतीय सिनेमा की सबसे प्रतिष्ठित ब्लॉकबस्टर फ़िल्म 'शोले' (Sholay) अपनी 50वीं सालगिरह के मौके पर एक बार फिर से सिनेमाघरों में रिलीज़ होने जा रही है! लेकिन इस बार यह किसी आम अंदाज़ में नहीं आएगी. 'शोले: द फाइनल कट' (Sholay The Final Cut) के नाम से, यह फिल्म 4K रीस्टोरेशन (4K Restoration) में और अपने उस असली अंत (Original Ending) के साथ आएगी, जिसे सेंसर बोर्ड ने 1975 में हटा दिया था. 12 दिसंबर, 2025 को भारत के 1500 स्क्रीन पर इसका प्रीमियर होगा, और यह भारतीय सिनेमा के इतिहास की सबसे बड़ी री-रिलीज़ में से एक होगी.

4K रीस्टोरेशन: क्या बदल जाएगा आपका देखने का अनुभव?

अगर आप सोच रहे हैं कि 4K रीस्टोरेशन का मतलब क्या है, तो इसका सीधा मतलब है कि आप 'शोले' को पहले से कहीं ज़्यादा शानदार, साफ़ और दमदार विज़ुअल क्वालिटी (Visual Quality) में देखेंगे. फ़िल्म हेरिटेज फ़ाउंडेशन और सिप्पी फ़िल्म्स ने इस क्लासिक फिल्म को Dolby 5.1 साउंड के साथ 4K में रिस्टोर करने के लिए तीन साल का लंबा और मुश्किल काम किया है. ऐसा लगेगा मानो जय (अमिताभ बच्चन), वीरू (धर्मेंद्र), बसंती (हेमा मालिनी), राधा (जया बच्चन), ठाकुर (संजीव कुमार) और गब्बर सिंह (अमजद खान) जैसे दिग्गज कलाकार एकदम नए अंदाज़ में आपकी आंखों के सामने हैं!यह अनुभव फिल्म के हर दृश्य, हर डायलॉग और हर गाने में जान भर देगा, जिससे दर्शकों को पहली बार 70mm एस्पेक्ट रेशियो और उसकी मूल भव्यता के साथ फिल्म देखने का मौका मिलेगा.

वह 'असली अंत' जो आज तक नहीं देखा: क्या था सेंसरशिप का कारण?

यह 'फाइनल कट' इसलिए भी बेहद खास है क्योंकि इसमें फिल्म का वह ओरिजिनल क्लाइमेक्स (Original Climax) देखने को मिलेगा, जो 1975 में आपातकाल के दौरान सेंसर बोर्ड द्वारा हिंसा के अत्यधिक चित्रण के कारण हटा दिया गया था.
असल में, रमेश सिप्पी द्वारा फिल्माए गए उस अंत में, ठाकुर बलदेव सिंह (संजीव कुमार) अपने नुकीले जूते का इस्तेमाल करके डाकू गब्बर सिंह (अमजद खान) को मारकर बदला लेता है. लेकिन, सेंसर बोर्ड ने इस दृश्य को अत्यधिक हिंसक माना, और कहा कि एक ईमानदार पुलिस अधिकारी का खुद कानून अपने हाथ में लेना गलत संदेश दे सकता है इस वजह से इस सीन को हटा दिया गया था और बाद में एक हल्का अंत फिल्माया गया था, जिसमें पुलिस आती है और गब्बर को गिरफ्तार कर लेती है.

यह अनकटा और अनसेंसर्ड वर्जन, जो पहले 1990 में यूके में वीएचएस पर रिलीज़ हुआ था, अब पहली बार भारत के सिनेमाघरों में आ रहा है. सिप्पी फिल्म्स और फ़िल्म हेरिटेज फ़ाउंडेशन इस री-रिलीज़ के साथ दर्शकों को निर्देशक रमेश सिप्पी का वो मूल दृष्टिकोण दिखाना चाहते हैं, जो फ़िल्म को सच्ची भावनात्मक और नाटकीय शक्ति प्रदान करता था.

तो तैयार हो जाइए 12 दिसंबर, 2025 को सिनेमाघरों में इतिहास को फिर से जीने के लिए! यह केवल एक फिल्म नहीं, बल्कि भारतीय सिनेमा का एक गौरव है, जिसे उसके पूरे रंग रूप में देखना हर फिल्म प्रेमी का सपना होगा