
Up Kiran, Digital Desk: भारत के संविधान की प्रस्तावना से 'समाजवाद' और 'धर्मनिरपेक्षता' शब्दों को हटाने की चर्चाओं पर केंद्र सरकार ने आज विराम लगा दिया है। संसद में एक अहम बयान में, सरकार ने स्पष्ट किया है कि संविधान की प्रस्तावना में किसी भी तरह के बदलाव की कोई योजना नहीं है। यह बयान उन अटकलों और बहसों के बीच आया है जो इन शब्दों को लेकर समय-समय पर होती रही हैं।
सरकार ने साफ किया है कि संविधान की प्रस्तावना से 'समाजवाद' और 'धर्मनिरपेक्षता' शब्दों को हटाने का फिलहाल कोई प्रस्ताव नहीं है। ये दोनों शब्द 1976 में 42वें संविधान संशोधन अधिनियम के माध्यम से प्रस्तावना में जोड़े गए थे। तब से, इन शब्दों की संवैधानिक स्थिति और औचित्य को लेकर विभिन्न कानूनी और राजनीतिक हलकों में बहस होती रही है।
कुछ वर्गों का तर्क रहा है कि ये शब्द मूल संविधान का हिस्सा नहीं थे और इन्हें आपातकाल के दौरान जोड़ा गया था, जबकि अन्य का मानना है कि ये भारतीय लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों और मूल्यों को दर्शाते हैं। सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने विभिन्न निर्णयों में इन सिद्धांतों के महत्व को रेखांकित किया है।
सरकार के इस बयान से उन अटकलों पर विराम लग गया है, जो देश के धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी ताने-बाने को लेकर चिंताएं पैदा कर रही थीं। यह स्पष्टीकरण भारत के संवैधानिक मूल्यों और सिद्धांतों के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है। इसका मतलब है कि निकट भविष्य में भारतीय संविधान की प्रस्तावना अपने मौजूदा स्वरूप में ही बनी रहेगी, जिसमें 'समाजवादी', 'धर्मनिरपेक्ष', 'लोकतांत्रिक गणराज्य', 'न्याय', 'स्वतंत्रता', 'समानता' और 'बंधुत्व' जैसे शब्द शामिल हैं।
यह कदम संविधान के मूल ढांचे और उसके द्वारा स्थापित मूल्यों को बनाए रखने के प्रति सरकार के रुख को दर्शाता है, जिससे देश में स्थिरता और संवैधानिक निरंतरता का संदेश जाता है।
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