शुक्रवार रात सोलापुर में एक दुखद घटना ने सभी को स्तब्ध कर दिया, जब प्रसिद्ध न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. शिरीष वलसंगकर ने अपने ही आवास पर लाइसेंसी रिवाल्वर से खुद को गोली मार ली। घटना रात करीब 8:45 बजे की बताई जा रही है। सोलापुर के पुलिस आयुक्त एम. राजकुमार ने इस आत्महत्या की पुष्टि की। घायल अवस्था में उन्हें तुरंत अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
मरीजों के प्रिय डॉक्टर, जो खुद को नहीं बचा सके
डॉ. वलसंगकर चिकित्सा क्षेत्र में एक जाना-पहचाना नाम थे। वे सोलापुर के मोदी निवास इलाके में रहते थे और यहीं पर उन्होंने अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली। इस दुखद खबर के सामने आने के बाद उनके मरीज, सहयोगी और समाज के लोग स्तब्ध हैं। वे न केवल एक कुशल डॉक्टर थे, बल्कि एक संवेदनशील और जिम्मेदार इंसान के रूप में भी पहचाने जाते थे।
पूरा परिवार चिकित्सा पेशे से जुड़ा
डॉ. वलसंगकर का पूरा परिवार चिकित्सा सेवा से जुड़ा हुआ है। उनके बेटे खुद एक न्यूरोलॉजिस्ट हैं, बहू न्यूरोसर्जन हैं और पत्नी स्त्रीरोग विशेषज्ञ (गायनोकॉलजिस्ट) हैं। डॉक्टरों के इस समर्पित परिवार को देखकर लोग प्रेरित होते थे। डॉ. वलसंगकर खुद भी बहुभाषी थे और मराठी, कन्नड़, अंग्रेजी और हिंदी में धाराप्रवाह बात कर सकते थे, जिससे वे अलग-अलग भाषाओं के मरीजों के साथ सहजता से संवाद कर पाते थे।
सम्मानित करियर और बड़ी पहचान
उन्होंने एमबीबीएस और एमडी की डिग्री हासिल करने के साथ ही लंदन के रॉयल कॉलेज ऑफ फिजिशियंस से एमआरसीपी किया था। उनका करियर बेहद प्रभावशाली रहा है। उन्हें महाराष्ट्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस द्वारा न्यूरोलॉजी सेवाओं में उत्कृष्ट योगदान के लिए 'सर्वश्रेष्ठ न्यूरोलॉजिस्ट' पुरस्कार से नवाजा गया था।
हेलीकॉप्टर से करते थे विजिट, कई राज्यों में इलाज करते थे
डॉ. वलसंगकर की लोकप्रियता और सेवाओं का दायरा केवल सोलापुर तक सीमित नहीं था। वे कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में मरीजों का इलाज करते थे। अपनी व्यस्तता और दूरी को देखते हुए वे कई बार अपने निजी हेलीकॉप्टर से विजिट करते थे, जो उनके पेशे के प्रति समर्पण को दर्शाता है।
प्रैक्टिस में आई कमी और मानसिक तनाव की आशंका
बताया जा रहा है कि बीते कुछ समय से उन्होंने घरेलू कारणों से अपनी प्रैक्टिस कम कर दी थी। हालांकि, उन्होंने आत्महत्या जैसा कदम क्यों उठाया, इसका स्पष्ट कारण अभी सामने नहीं आया है। उनके जानने वाले और मेडिकल समुदाय इस सवाल से जूझ रहे हैं कि आखिर एक सफल डॉक्टर को ऐसा फैसला क्यों लेना पड़ा।
मरीजों और शहर में शोक का माहौल
डॉ. वलसंगकर के निधन से सोलापुर के चिकित्सा जगत में शोक की लहर है। जो लोग उन्हें जानते थे, वे उनके व्यवहार, सादगी और चिकित्सा के प्रति उनके समर्पण को याद कर रहे हैं। यह घटना मानसिक स्वास्थ्य और डॉक्टरों के ऊपर बढ़ते दबाव को भी उजागर करती है।
मानसिक स्वास्थ्य को लेकर बढ़ती चिंता
डॉक्टरों की आत्महत्याएं आज एक गंभीर सामाजिक और पेशेवर चिंता का विषय बन चुकी हैं। अत्यधिक दबाव, मरीजों की उम्मीदों का भार, और पारिवारिक जिम्मेदारियां, इन सबका संतुलन बनाए रखना हर किसी के लिए आसान नहीं होता। यह घटना एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर करती है कि हमें मानसिक स्वास्थ्य को लेकर जागरूकता और सहानुभूति की कितनी जरूरत है।
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