लखनऊ। योगी सरकार की भ्रष्टाचार के प्रति जीरो टॉलरेंस और नियुक्तियों में पारदर्शिता की नीति का जमकर मखौल उड़ाया जा रहा है। आने वाली 31 जुलाई को विधानपरिषद के प्रमुख सचिव डॉ. राजेश सिंह का कार्यकाल खत्म हो रहा है। उसके पहले ही उनके सेवा विस्तार की अटकलों ने तेजी पकड़ ली है। विधानपरिषद के अंदरखाने कहा जा रहा है कि डॉ. राजेश सिंह भी अब विधानसभा के प्रमुख सचिव प्रदीप दुबे की राह पर चल पड़े हैं।
साल 2020—21 में विधानसभा में समीक्षा अधिकारी के पदों पर हुई भर्तियों को लेकर खूब हंगामा मचा था। उनमें डॉ. राजेश सिंह के बेटे की भी नियुक्ति हुई थी, जो मौजूदा समय में पुस्तकालय में कार्यरत है। उनके बेटे के अलावा कई अन्य रसूखदारों के रिश्तेदारों को भी नौकरियों की रेवड़ियां बांटी गई थीं। जिस एजेंसी को भर्ती कराने का ठेका दिया गया था। उस एजेंसी के बड़े ओहदेदारों के रिश्तेदारों तक की विधानसभा में भर्तियां कर ली गईं। इसकी शिकायतें भी हुई। पर उसका कोई असर नहीं पड़ा। बेटे की नियुक्ति के बाद डॉ. राजेश सिंह सेवा विस्तार की अटकलों को लेकर चर्चा में है।
आपको बता दें कि विधानपरिषद के प्रमुख सचिव का कार्यकाल महज 3 साल का होता है। 2018 में डॉ. राजेश सिंह ने प्रमुख सचिव की कुर्सी का दायित्व संभाला था। अब विधानसभा के प्रमुख सचिव प्रदीप दुबे की तरह डॉ. राजेश सिंह भी सेवा विस्तार के जरिए विधानपरिषद के प्रमुख सचिव की कुर्सी पर काबिज रहना चाहते हैं। प्रदीप दुबे भी रिटायरमेंट के कई साल बाद भी अब तक विधानसभा के प्रमुख सचिव की कुर्सी पर जमे हुए हैं। अंदरखाने उनके कुर्सी पर जमे होने का उदाहरण देकर विधानपरिषद के प्रमुख सचिव डॉ. राजेश सिंह के सेवा विस्तार की अटकलों को सही ठहराया जा रहा है। अब यह अटकलें सिर्फ कयास हैं या हकीकत यह आने वाले 31 जुलाई के बाद ही साफ हो पाएगा।
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