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success story: राजस्थान कर्मचारी चयन बोर्ड के चेयरमैन एवं सेवानिवृत्त आर्मी मेजर जनरल आलोक राज ने सोशल मीडिया पर एक बेहद प्रेरक कहानी साझा की। स्थानीय दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित ये कहानी गज्जू यानी गजेसिंह के संघर्ष और सफलता के शिखर तक पहुंचने की है। आज वो उसी रेलवे स्टेशन के अधीक्षक बन गए हैं जहां वो कभी जूते पॉलिश करने का काम करते थे। रेलवे में नौकरी पाने से पहले उन्हें नौकरी की तलाश में कई नाकामियों का सामना करना पड़ा था।

रिपोर्ट के मुताबिक, गजेसिंह राजस्थान के ब्यावर रेलवे स्टेशन के अधीक्षक बन गए हैं, जहां वे 35 साल पहले गज्जू नाम से जूता पॉलिश का काम करते थे। बचपन में गजेसिंह के पास किताबें खरीदने के लिए पैसे नहीं थे, इसलिए वो अपने बचपन के दोस्त मुरली के साथ किताबें खरीदता और किताबों को दो टुकड़ों में फाड़ देता और दोनों उन्हें एक-एक करके पढ़ते।

परिवार का खर्च चलाने के लिए गजेसिंह स्कूल से घर आने के बाद अन्य बच्चों के साथ रेलवे स्टेशन पहुंचता और जूता पॉलिश का डिब्बा और दो ब्रश लेकर रोजाना यात्रियों के जूते पॉलिश करता। इससे उसे 20-30 रुपए प्रति दिन की कमाई हो जाती थी। इसके बाद अधिक पैसे कमाने के लिए उन्होंने बैंड के सदस्यों के साथ बैंड बजाना शुरू कर दिया, जिसके लिए उन्हें 50 रुपये मिलते थे।

गजेसिंह ने 25 बार प्रतियोगी नौकरी परीक्षा पास की, मगर कई बार इंटरव्यू में असफल रहे। वो सिपाही, हेड कांस्टेबल, सीपीओ सब इंस्पेक्टर और एसएससी की प्रतियोगी परीक्षाओं में दो बार उपस्थित हो चुके हैं। सहायक स्टेशन मास्टर के लिए रेलवे भर्ती परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्हें 2008 में वीरदावल-सूरतगढ़, बीकानेर में स्टेशन मास्टर के रूप में अपनी पहली पोस्टिंग मिली। 35 साल बाद वो उसी स्टेशन पर अधीक्षक बन गये जहां वो जूते पॉलिश करने का काम करते थे।

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