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सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि बिहार में चुनाव से ठीक पहले मतदाता पहचान प्रक्रिया बतौर “वोटर वेरिफिकेशन” लागू नहीं किया जा सकता। अदालत ने यह टिप्पणी चुनाव आयोग की कार्यवाही की समीक्षा करते हुए की है।

कांग्रेसी वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल और अभिषेक मनु सिंघवी समेत अन्य वरिष्ठ वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। उनका कहना था कि 25 जुलाई तक सिर्फ एक महीने का समय बचा है, जबकि चुनाव में लाखों मतदाताओं की सूची में नाम हटने या जोड़ने की जोड़ने की प्रक्रिया पहले से ही चल रही है। इसके चलते महिलाओं, गरीबों और पिछड़े वर्गों के मताधिकार प्रभावित हो सकते हैं।

तीन याचिकाकर्ता – कांग्रेस, आरजेडी, टीएमसी – सहित अन्य संगठनों ने इस “स्पेशल गहन पुनरीक्षण” प्रक्रिया को असंवैधानिक और जनविरोधी बताया है। उन्होंने कहा है कि इससे गरीब–पिछड़ों का वोटर लिस्ट से नाम हट सकता है।

निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने की चुनौती के बीच, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वोटर वेरिफिकेशन चुनाव से पहले नहीं होना चाहिए। अदालत ने चुनाव आयोग और केंद्र सरकार को निर्देश दिया है कि वे तर्क के साथ दस्तावेजी रूप से याचिकाएँ पढ़ें, और तैयार होकर सुनवाई में भाग लें ।

इस प्रक्रिया को लेकर बिहार में राजनीतिक सरगर्मी भी तेज है। विपक्षी दलों ने विशेष गहन पुनरीक्षण की आलोचना की है और विरोध प्रदर्शन किए हैं। आरजेडी, टीएमसी, कांग्रेस जैसी पार्टियों ने ECI (निर्वाचन आयोग) पर आरोप लगाए हैं कि यह प्रक्रिया समयबद्ध नहीं है और इसे चुनाव की संभावित गड़बड़ियों के लिए खोलती है।

अब सुप्रीम कोर्ट जल्द इस मामले की सुनवाई करने वाला है। अदालत की टिप्पणी स्पष्ट है कि चुनाव से ठीक पहले मतदाता जांच-परख का यह अभियान उचित नहीं माना जाता। अब देखना होगा कि चुनाव आयोग और केंद्र सरकार इस पर क्या जवाब देते हैं।

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