
Up Kiran, Digital Desk: सुप्रीम कोर्ट ने गैंगरेप (सामूहिक बलात्कार) के मामलों को लेकर एक बहुत ही महत्वपूर्ण व्यवस्था दी है। कोर्ट ने साफ कर दिया है कि अगर कई लोग मिलकर गैंगरेप करते हैं, तो सबको दोषी ठहराने के लिए यह साबित करना ज़रूरी नहीं है कि हर एक आरोपी ने खुद बलात्कार का पूरा काम किया हो। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि भले ही रेप असल में किसी एक व्यक्ति ने किया हो, लेकिन अगर उस अपराध में दूसरे लोग भी शामिल थे और उनका इरादा एक जैसा था, तो उन सभी को जिम्मेदार माना जाना चाहिए और बराबर सज़ा मिलनी चाहिए।
क्या था मामला?
यह फैसला सुप्रीम कोर्ट ने एक आरोपी की याचिका को खारिज करते हुए सुनाया। इस आरोपी ने दलील दी थी कि पीड़िता ने जो FIR दर्ज कराई थी, उसमें उसका नाम सीधे तौर पर नहीं लिया गया था। उसका कहना था कि अपराध में उसकी भूमिका सिर्फ मुख्य आरोपी की मदद करने तक ही सीमित थी, उसने खुद रेप नहीं किया था।
कोर्ट ने क्या कहा?
लेकिन सुप्रीम कोर्ट की बेंच (न्यायमूर्ति संजय करोल और के.वी. विश्वनाथन) ने इस दलील को नहीं माना। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 376(2)(जी) के तहत गैंगरेप के मामले में, अगर यह साबित हो जाता है कि अपराध एक साझा इरादे (Common Intention) से किया गया था, तो गैंग के सभी सदस्य उस अपराध के लिए दोषी माने जाएंगे। यानी, यह दिखाना काफी है कि अपराध करने में सबका इरादा एक था।
सबूत का मतलब?
कोर्ट ने अपने पिछले फैसलों का जिक्र करते हुए कहा कि धारा 376(2)(जी) के तहत केस साबित करने के लिए, सरकारी वकील (अभियोजन पक्ष) को यह दिखाना होगा कि अपराध में एक से ज़्यादा लोग शामिल थे और उनका इरादा एक था। यह साबित करना ज़रूरी नहीं है कि हर शामिल व्यक्ति ने शारीरिक रूप से बलात्कार किया हो। अगर साझा इरादा साबित हो जाता है और वे अपराध में किसी भी तरह शामिल थे, तो वे सभी दोषी करार दिए जाएंगे और उन्हें सज़ा मिलेगी।
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