Up Kiran, Digital Desk: बिहार में विधानसभा चुनाव की तैयारी जोर पकड़ चुकी है और इसी बीच वक्फ संशोधन कानून को लेकर सियासी माहौल गरमा गया है। इस विवाद ने न सिर्फ राजनीतिक पार्टियों के बीच तीखी बहस को जन्म दिया है, बल्कि आम जनता में भी इस मसले को लेकर गहरी चर्चा शुरू हो गई है। खासकर मुसलमान समुदाय और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए यह मामला संवेदनशील हो गया है, जिससे चुनावी रणनीतियों पर भी असर पड़ने की संभावना बन रही है।
पटना के गांधी मैदान में रविवार को ‘वक्फ बचाओ-दस्तूर बचाओ’ रैली का आयोजन हुआ, जहां राष्ट्रीय जनता दल के युवा नेता तेजस्वी यादव ने केंद्र सरकार के नए वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया। उन्होंने साफ कहा कि उनकी सरकार बनने पर यह कानून बिहार में लागू नहीं होगा और इसे पूरी तरह नकारा जाएगा। तेजस्वी के इस तेवर से समुदाय के एक बड़े हिस्से में समर्थन की लहर देखी गई, जो उन्हें अपने हक की लड़ाई का प्रतीक मान रहे हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार का उद्देश्य सिर्फ वक्फ संपत्तियों पर कब्जा जमाना नहीं, बल्कि मुसलमानों, दलितों और पिछड़ों के राजनीतिक अधिकारों को कमजोर करना भी है।
वहीं, भारतीय जनता पार्टी ने इस बयान को गंभीर चुनौती माना और तेजस्वी की आलोचना करते हुए कहा कि यह न केवल संसद की अवमानना है, बल्कि संवैधानिक व्यवस्था की भी खिल्ली उड़ाना है। बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने जोर देकर कहा कि यह कानून दोनों सदनों में पारित हो चुका है और इस पर न्यायालय में विचाराधीन प्रक्रिया जारी है। उन्होंने तेजस्वी पर वोट बैंक की राजनीति करने और समाजवादी सोच के बजाय धार्मिक मुद्दों को उभारने का आरोप लगाया। साथ ही, उन्होंने सवाल उठाया कि क्या तेजस्वी बिहार में शरिया कानून लागू करना चाहते हैं, जो कि संविधान के सिद्धांतों के खिलाफ होगा।
इस बहस ने बिहार की राजनीतिक तस्वीर को नया आयाम दिया है। एक तरफ जहां कुछ वर्ग इसे सांप्रदायिक एजेंडे के रूप में देखते हैं, वहीं कई लोग इसे अपनी सामाजिक और धार्मिक पहचान की रक्षा की लड़ाई मान रहे हैं। राजनीतिक दल इस मुद्दे को चुनावी मोर्चे पर बड़े हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने की कोशिश में लगे हैं। ऐसे में वक्फ संशोधन कानून का विवाद न केवल आगामी चुनावों की राजनीति को प्रभावित करेगा, बल्कि सामाजिक सामंजस्य और धार्मिक संवेदनशीलता की परीक्षा भी लेकर आएगा।
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