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Up Kiran, Digital Desk: तेलंगाना में इन दिनों शराब की दुकानों की संख्या में जिस तेजी से इजाफा हो रहा है, वह एक बड़ा सामाजिक और स्वास्थ्य संबंधी चिंता का विषय बन गया है। सरकार की नई आबकारी नीति के तहत अब हर छोटे-बड़े गांव और यहां तक कि शहरों की हर गली में शराब की दुकानें 'मशरूम' की तरह उग रही हैं। यह स्थिति न केवल लोगों के स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल रही है, बल्कि सामाजिक ताने-बाने को भी कमजोर कर रही है।

राज्य में पहले से ही शराब की खपत एक महत्वपूर्ण मुद्दा रही है, और अब इसकी इतनी आसान उपलब्धता स्थिति को और भी बदतर बना रही है। गांवों में जहां पहले इक्का-दुक्का दुकानें होती थीं, वहीं अब कई-कई शराब की दुकानें एक साथ देखने को मिल रही हैं। ऐसा लग रहा है कि सरकार अपने राजस्व को बढ़ाने के लिए शराब की बिक्री को बढ़ावा दे रही है, लेकिन इसके दीर्घकालिक सामाजिक प्रभावों पर शायद पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

शराब की दुकानों की यह बढ़ती संख्या न केवल सार्वजनिक स्थानों पर उपद्रव को बढ़ा रही है, बल्कि घरेलू हिंसा, सड़क दुर्घटनाओं और अन्य अपराधों में भी वृद्धि का कारण बन सकती है। महिलाएं और बच्चे विशेष रूप से इस बढ़ती हुई आसान उपलब्धता से प्रभावित हो रहे हैं। आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों पर भी इसका बुरा असर पड़ रहा है, क्योंकि कमाई का एक बड़ा हिस्सा शराब पर खर्च हो रहा है, जिससे गरीबी और कुपोषण बढ़ रहा है।

विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं का मानना है कि सरकार को राजस्व पर ध्यान देने के साथ-साथ नागरिकों के स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा को भी प्राथमिकता देनी चाहिए। शराब की दुकानों के लिए सख्त लाइसेंसिंग नियम, दूरी के मानदंड और प्रभावी विनियमन बेहद आवश्यक हैं।

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