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Up Kiran, Digital Desk: बांग्लादेश में इस साल अगस्त में जो हुआ, वह किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं था. लाखों छात्र सड़कों पर थे, और 300 से ज़्यादा लोगों की जान जा चुकी थी. प्रधानमंत्री शेख हसीना के 15 साल के शासन का किला ढह रहा था. गुस्साई भीड़ उनके ऑफिस और घर की तरफ बढ़ रही थी. सबको लग रहा था कि हसीना का भी वही हश्र होगा, जो 1975 में उनके पिता और बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान का हुआ था.

लेकिन ऐसा नहीं हुआ. शेख हसीना और उनकी बहन रेहाना आखिरी मौके पर एक हेलीकॉप्टर से ढाका से निकलकर भारत पहुंच गईं. अब सवाल यह उठता है कि जो भीड़ उनके पिता को नहीं बख्श पाई, उससे हसीना कैसे बच निकलीं? एक नई रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि इस पूरे घटनाक्रम के पीछे भारत का एक "समय पर किया गया फोन कॉल" था, जिसने सब कुछ बदल दिया.

उस रात क्या हुआ था?

5 अगस्त की रात थी. ढाका की सड़कें 'स्टूडेंट मूवमेंट' के प्रदर्शनकारियों से भरी हुई थीं. हालात बेकाबू हो चुके थे. सेना प्रमुख जनरल वकार-उज़-ज़मान ने शेख हसीना को साफ-साफ बता दिया था कि अब सेना उनके साथ नहीं है और उन्हें तुरंत इस्तीफा दे देना चाहिए. हसीना के पास कोई रास्ता नहीं बचा था.

रिपोर्ट के मुताबिक, उस नाजुक मौके पर भारत सरकार के एक बहुत बड़े अधिकारी ने हसीना को फोन किया. उस फोन कॉल में सिर्फ दो बातें कहीं गईं:

तुरंत इस्तीफा दे दीजिए.

देश छोड़कर सुरक्षित जगह चली जाइए.

भारत की इस सलाह ने हसीना को यह समझने में मदद की कि अब खेल खत्म हो चुका है और जान बचाने का यही आखिरी मौका है.

पिता की तरह दोहराई जाती कहानी

यह मंजर हूबहू 49 साल पहले जैसा था. 15 अगस्त 1975 को बांग्लादेशी सेना के कुछ बागी अफसरों ने शेख मुजीबुर रहमान के घर पर हमला कर दिया था. उस हमले में शेख मुजीब के साथ-साथ उनके परिवार के लगभग सभी सदस्यों को बेरहमी से गोलियों से भून दिया गया था. उस वक्त शेख हसीना और उनकी बहन रेहाना जर्मनी में थीं, इसलिए उनकी जान बच गई.

इस बार भी भीड़ का गुस्सा वैसा ही था. प्रदर्शनकारी "फांसी, फांसी, हसीना फांसी" जैसे नारे लगा रहे थे. अगर हसीना कुछ घंटे और रुक जातीं, तो शायद ढाका में एक और खूनी इतिहास लिखा जाता.

भारत ने क्यों और कैसे की मदद?

भारत हमेशा से शेख हसीना की सरकार का एक मजबूत सहयोगी रहा है. हसीना के शासन में बांग्लादेश में स्थिरता थी और भारत के पूर्वोत्तर राज्यों में भी शांति बनाए रखने में मदद मिली. भारत नहीं चाहता था कि बांग्लादेश में अचानक सत्ता परिवर्तन हो और वहां कट्टरपंथी ताकतें हावी हो जाएं, जो भारत के लिए एक बड़ा खतरा बन सकती थीं.

जब सेना ने हसीना का साथ छोड़ दिया, तो भारत समझ गया कि अब उन्हें बचाना ही एकमात्र रास्ता है. भारत की सलाह पर ही हसीना ने इस्तीफा दिया और उनके लिए सुरक्षित निकलने का रास्ता तैयार किया गया.

यह घटना बताती है कि पड़ोसी देशों की राजनीति में भारत का कितना अहम दखल है और कैसे एक फोन कॉल ने इतिहास को दोहराने से रोक दिया.