first indian spy: जब भी आपने किसी जासूसी फिल्म या कहानी के बारे में सुना होगा, आपके दिमाग में एक स्टाइलिश जासूस की छवि उभरती होगी। एक ऐसा शख्स, जो तेज़ रफ्तार कार चलाता है, फाइट मूव्स में माहिर है और खतरनाक मिशन पर निकलता है। मगर असल ज़िंदगी के जासूस इससे बिल्कुल अलग होते हैं। भारत के मौजूदा एनएसए अजीत डोभाल हों या दशकों पहले हिटलर जैसे बड़े तानाशाह को मात देने वाले 'सिल्वर' यानी भगतराम तलवार-ये जासूस अपनी सादगी में छिपे रहते हैं।
जानें भारत के पहले जासूस का बारे में
'भगतराम तलवार'- ये नाम किसी जासूस का नाम कम और आम इंसान का नाम ज्यादा लगता है। हालांकि, उन्हें भारत का पहला जासूस कहा जाता है। भगतराम को दुनिया में 'सिल्वर' के नाम से पहचाना जाता था। उन्होंने भारत ही नहीं, बल्कि पांच देशों के लिए जासूसी की। दिलचस्प बात ये है कि भगतराम ने तब जासूसी शुरू की थी, जब भारत में रॉ (रिसर्च एंड एनालिसिस विंग) जैसी खुफिया एजेंसी का अस्तित्व भी नहीं था।
तलवार के जीवन और उनके जासूसी अभियानों पर एक किताब लिखी गई है। इस किताब का नाम है 'सिल्वर: द स्पाई हू फूल्ड द नाजिस'। इसे लेखक और पत्रकार मिहिर बोस ने लिखा है। इस किताब में भगतराम की कई गुप्त कहानियों का जिक्र किया गया है। बताया गया है कि भगतराम रहमत खान के नाम से भी मशहूर थे, मगर 'सिल्वर' उनका सबसे चर्चित कोडनेम था।
सुभाष चंद्र बोस को जेल से छुड़ाया
भगतराम तलवार न केवल एक जासूस थे, बल्कि भारत के स्वतंत्रता संग्राम के नायक भी थे। कहा जाता है कि 1941 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस को अंग्रेजों की नजरबंदी से भगाने में भगतराम ने अहम भूमिका निभाई थी। नेताजी उनके साथ कोलकाता से काबुल तक गए, मगर उन्हें यह भनक तक नहीं लगी कि उनके साथ मौजूद भगतराम एक जासूस हैं।
हिटलर को दिया चकमा
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान भगतराम ने नाजियों के लिए जासूसी करने का दिखावा किया। जर्मनी ने उन्हें ब्रिटेन और मित्र राष्ट्रों के सिक्रेट मैसेज हासिल करने का काम सौंपा था। भगतराम ने उन्हें जो भी मैसेज भेजे वे सभी झूठे थे। ये मैसेज दिल्ली के वाइसरीगल पैलेस (अब राष्ट्रपति भवन) में तैयार किए जाते थे। भगतराम असल में एक डबल एजेंट थे, जो चोरी छिपे कम्युनिस्टों के साथ मिलकर नाजियों के खिलाफ काम कर रहे थे।
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