
Up Kiran, Digital Desk: आंध्र प्रदेश में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) सरकार ने सत्ता में अपना पहला वर्ष पूरा कर लिया है, और इस अवधि के दौरान उसके प्रदर्शन को 'मिला-जुला' कहा जा सकता है। मुख्यमंत्री एन चंद्रबाबू नायडू के नेतृत्व में यह सरकार, जिसमें तेलुगु देशम पार्टी (TDP), जन सेना और भारतीय जनता पार्टी (BJP) शामिल हैं, को पिछली वाईएसआरसीपी सरकार के बाद एक महत्वपूर्ण बदलाव लाने की उम्मीद के साथ चुना गया था।
सकारात्मक पहल और उपलब्धियां:
सरकार ने आते ही कई प्रमुख क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित किया है। सबसे पहले, मुख्यमंत्री नायडू ने तुरंत अमरावती को राज्य की एकमात्र राजधानी के रूप में पुनर्जीवित करने पर जोर दिया है, जो पिछली सरकार के तीन राजधानियों के प्रस्ताव के विपरीत है। उन्होंने अमरावती के विकास और इसे वैश्विक शहर बनाने के लिए सिंगापुर सहित विभिन्न विदेशी निवेशकों को आकर्षित करने के लिए भी पहल की है।
इसके अलावा, सरकार ने पिछली वाईएसआरसीपी सरकार द्वारा लाए गए कई विवादित कानूनों और नीतियों की समीक्षा और कुछ को रद्द करने का काम किया है, जिसमें विवादास्पद 'भूमि स्वामित्व अधिनियम' भी शामिल है। कानून और व्यवस्था की स्थिति में सुधार लाने और सुशासन स्थापित करने के प्रयास भी किए जा रहे हैं, खासकर राज्य को पिछली सरकार के 'अराजक' शासन से बाहर निकालने के संदर्भ में। औद्योगिक निवेश और रोज़गार सृजन को बढ़ावा देने के लिए भी कदम उठाए गए हैं, खासकर आईटी और विनिर्माण क्षेत्रों में।
सामने खड़ी चुनौतियां:
हालांकि, सरकार को कई बड़ी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ रहा है। सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा राज्य की गंभीर वित्तीय स्थिति है, जिसमें पिछली सरकार द्वारा छोड़े गए भारी कर्ज और वित्तीय कुप्रबंधन शामिल हैं। मुख्यमंत्री नायडू केंद्र सरकार से राज्य के लिए विशेष पैकेज या विशेष राज्य का दर्जा प्राप्त करने के लिए लगातार पैरवी कर रहे हैं, जो राज्य के व्यापक विकास के लिए महत्वपूर्ण है।
चुनावी वादों को पूरा करना भी एक बड़ी चुनौती है, खासकर युवाओं के लिए रोज़गार सृजन और कल्याणकारी योजनाओं का प्रभावी कार्यान्वयन। पिछली सरकार की भ्रष्टाचार की कथित विरासत को साफ करना और लोगों का विश्वास फिर से हासिल करना भी एक लंबा रास्ता है।
एनडीए सरकार ने अपने पहले वर्ष में राज्य को पटरी पर लाने और विकास को गति देने के लिए महत्वपूर्ण प्रयास किए हैं। लेकिन, वित्तीय बाधाओं, केंद्र से अपेक्षाओं और चुनावी वादों के बोझ के साथ, आने वाले वर्ष सरकार के लिए और भी चुनौतीपूर्ण साबित हो सकते हैं।
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