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Up Kiran, Digital Desk: साउथ सिनेमा के 'किंग' कहे जाने वाले नागार्जुन अपनी दमदार एक्टिंग और बेहतरीन फिल्मों के लिए जाने जाते हैं। उनकी फिल्मों में सिर्फ कहानी नहीं, बल्कि हर सीन में परफेक्शन की झलक दिखाई देती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि उनकी एक बेहद सफल फिल्म 'चंद्रलेखा' (जो 1998 में रिलीज हुई थी) के एक सीन से जुड़ा एक ऐसा किस्सा है, जिसे सुनकर आज भी लोग हैरान रह जाते हैं?

 इस सीन में नागार्जुन ने अपनी सह-कलाकार ईशा कोप्पिकर को एक, दो नहीं, बल्कि पूरे 14 बार थप्पड़ मारे थे! चौंक गए ना? लेकिन यह कोई विवाद या झगड़ा नहीं, बल्कि कला के प्रति उनकी अटूट निष्ठा और फिल्मी पर्दे पर परफेक्शन हासिल करने की पराकाष्ठा थी। तो चलिए, आज एंटरटेनमेंट की दुनिया के इस दिलचस्प और अनसुने किस्से के बारे में विस्तार से जानते हैं।

चंद्रलेखा साउथ सिनेमा की एक यादगार फिल्म नागार्जुन और ईशा कोप्पिकर अभिनीत 'चंद्रलेखा' साउथ सिनेमा की एक ऐसी फिल्म है जिसने बॉक्स ऑफिस पर धमाल मचाया था। यह एक रोमांटिक-कॉमेडी ड्रामा थी जिसमें दमदार परफॉर्मेंस और बेहतरीन निर्देशन का जादू था। फिल्म के हर सीन को जीवंत बनाने के लिए मेकर्स और एक्टर्स ने कोई कसर नहीं छोड़ी थी। लेकिन एक सीन ऐसा था जिसने फिल्म उद्योग में खूब सुर्खियां बटोरीं और आज भी उसे परफेक्शन के एक उदाहरण के तौर पर याद किया जाता है।

वो 'दर्दनाक' सीन और 14 थप्पड़ का राज! फिल्म में एक ऐसा भावनात्मक और नाटकीय सीन था जहाँ कहानी में एक बड़ा मोड़ आता है। यह वो पल था जहाँ नागार्जुन का किरदार गुस्से और निराशा में अपनी भावनाएं व्यक्त करता है, और इस दौरान वह ईशा कोप्पिकर के किरदार को थप्पड़ मारता है। निर्देशक कृष्णा वामसी अपनी फिल्मों में यथार्थवाद के लिए जाने जाते हैं। उन्हें इस सीन में वो कच्ची और तीव्र भावना चाहिए थी जो दर्शकों के दिलों को छू जाए।

मीडिया रिपोर्ट्स और फिल्मी गलियारों में प्रचलित कहानियों के अनुसार, निर्देशक कृष्णा वामसी को लगा कि पहला या दूसरा थप्पड़ सीन की गहराई को व्यक्त नहीं कर पा रहा है। हर टेक के साथ, नागार्जुन और ईशा कोप्पिकर ने अपनी पूरी क्षमता से सीन को परफेक्ट करने की कोशिश की। नागार्जुन, जो खुद एक पूर्णतावादी अभिनेता माने जाते हैं, ने इस सीन को अपनी पूरी शिद्दत से करने का फैसला किया। ईशा कोप्पिकर ने भी अपनी व्यावसायिकता का बेहतरीन परिचय दिया। उन्होंने हर टेक के साथ बिना किसी शिकायत के निर्देशक की मांग को पूरा करने की कोशिश की।

बार-बार टेक लिए गए, और हर बार नागार्जुन को ईशा कोप्पिकर को थप्पड़ मारना पड़ा। इस प्रक्रिया में, नागार्जुन ने कथित तौर पर ईशा कोप्पिकर को 14 बार थप्पड़ मारे ताकि निर्देशक को वो परफेक्ट शॉट मिल सके जिसकी उन्हें तलाश थी। सोचिए, एक सीन के लिए 14 बार थप्पड़ खाना, यह शारीरिक और मानसिक रूप से कितना चुनौतीपूर्ण रहा होगा! लेकिन कला के प्रति उनका समर्पण उस दर्द से कहीं ऊपर था।

कलाकारों का समर्पण और निर्देशक का विजन यह घटना सिर्फ थप्पड़ मारने की नहीं, बल्कि एक्टर्स की लगन, निर्देशक के विजन और एक यादगार सीन को बनाने की कहानी है। यह दर्शाता है कि एक कलाकार अपनी कला के लिए कितनी हद तक जा सकता है। नागार्जुन और ईशा कोप्पिकर दोनों ने इस सीन को सफल बनाने के लिए अपना सब कुछ झोंक दिया। ईशा की सहनशीलता और नागार्जुन का यथार्थवादी अभिनय, दोनों ने मिलकर उस सीन को इतना प्रभावशाली बना दिया कि वह आज भी साउथ सिनेमा के आइकॉनिक सीन्स में गिना जाता है।

यह कहानी उन फिल्मी पर्दे के पीछे की मेहनत को उजागर करती है जो अक्सर दर्शकों तक नहीं पहुंच पाती। एक बेहतरीन शॉट पाने के लिए कलाकार और क्रू मेंबर्स कितनी मेहनत करते हैं, यह इसका जीता जागता उदाहरण है।

चंद्रलेखा' और उस सीन का स्थायी प्रभाव जब यह सीन बड़े पर्दे पर आया, तो दर्शक हिल गए। इस सीन की तीव्रता और यथार्थवाद ने दर्शकों पर गहरा प्रभाव डाला। 'चंद्रलेखा' को दर्शकों और आलोचकों दोनों से खूब सराहना मिली, और इसका एक बड़ा श्रेय ऐसे प्रभावशाली सीन्स को भी जाता है। यह घटना आज भी फिल्म उद्योग में परफेक्शन और एक्टर्स के समर्पण के एक उदाहरण के रूप में याद की जाती है। गूगल डिस्कवर और ट्रेंडिंग एंटरटेनमेंट न्यूज में भी ऐसी कहानियाँ अक्सर अपनी जगह बनाती हैं, क्योंकि ये दर्शकों को सिनेमा के उस अनदेखे पहलू से रूबरू कराती हैं।

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