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Up kiran,Digital Desk : कभी-कभी अदालत में ऐसी बातें हो जाती हैं जो हैरान कर देती हैं। हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका आई, जिसमें कहा गया था कि भारत की 75% आबादी भूकंप के सबसे ज़्यादा खतरे वाले इलाकों में रहती है। याचिका लगाने वाले सज्जन खुद ही बहस कर रहे थे। उन्होंने जजों को बताया कि खतरा बहुत बड़ा है और सरकार को भूकंप से बचाने के लिए पुख्ता इंतज़ाम करने का आदेश दिया जाए।

इस पर बेंच पर बैठे जज ने हल्के-फुल्के अंदाज़ में पूछ लिया, "तो फिर क्या करें? सबको चाँद पर भेज दें या कहीं और?" याचिकाकर्ता ने जापान में आए भूकंप का उदाहरण दिया। इस पर जज ने कहा, "पहले हमारे देश में ज्वालामुखी तो आने दीजिए, फिर जापान से तुलना करेंगे।"

याचिकाकर्ता अपनी बात पर अड़े रहे कि सरकार को कुछ तो करना चाहिए। इस पर कोर्ट ने साफ़ कहा, "ये सब देखना सरकार का काम है, हम इसमें दखल नहीं दे सकते।" और इतना कहकर याचिका खारिज़ कर दी।

कानून सबूतों पर चलता है, सहानुभूति पर नहीं - सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने एक सड़क हादसे के मामले में एक बहुत बड़ी बात कही है। कोर्ट ने साफ़ किया कि किसी को दोषी ठहराने के लिए मज़बूत सबूत चाहिए, सिर्फ़ दुख या सहानुभूति के आधार पर कानून को बदला नहीं जा सकता।

मामला 2013 का था, जब एक सड़क हादसे में दो नौजवानों की मौत हो गई थी। उनके परिवार वालों ने मुआवज़े का दावा किया, लेकिन ये साबित नहीं कर पाए कि जिस गाड़ी पर आरोप लगाया गया, हादसा उसी से हुआ था। मोटर व्हीकल इंस्पेक्टर की रिपोर्ट में भी गाड़ी पर कोई खरोंच तक नहीं मिली थी। कोर्ट ने माना कि नौजवानों की मौत दुखद है, लेकिन जब कोई पक्का सबूत ही नहीं है, तो किसी को ज़िम्मेदार कैसे ठहरा सकते हैं? कोर्ट ने कहा कि सिर्फ़ FIR दर्ज हो जाना ही काफ़ी नहीं होता। इसीलिए, दावे को खारिज़ करने के कर्नाटक हाईकोर्ट के फ़ैसले को सही ठहराया गया।

सैनिकों के सिर पर बेघर होने का खतरा, अब सुप्रीम कोर्ट से आस

हमारे देश की सुरक्षा में लगे CAPF (CRPF, BSF जैसे सुरक्षा बल) के सैकड़ों जवानों पर मुश्किल आ पड़ी है। जो जवान मुश्किल इलाकों में तैनात होते हैं, वे अपने परिवार को दिल्ली, कोलकाता जैसे शहरों में सरकारी मकानों में रखते थे। लेकिन 2017 में एक नियम बदला गया, जिसके बाद उन्हें सिर्फ़ 3 साल तक ही घर रखने की इजाज़त दी गई।

अब दिल्ली हाईकोर्ट ने भी इस नए नियम को सही ठहरा दिया है। इसके बाद कई जवानों को लाखों रुपये का जुर्माना भरने और घर खाली करने का नोटिस मिला है। ये वो जवान हैं जो हमारी और आपकी सुरक्षा के लिए अपनी जान दाँव पर लगाते हैं। अब उनके परिवार सड़क पर आने की कगार पर हैं।

परेशान जवान अब सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी कर रहे हैं। मामला इतना गंभीर है कि गृह मंत्रालय ने भी आवास मंत्रालय से बात करके कोई हल निकालने को कहा है। उम्मीद है कि सरकार जवानों को राहत देगी और उन्हें पहले की तरह घर रखने की सुविधा वापस मिल जाएगी।

तरस खाकर मिली नौकरी में तरक्की नहीं मांग सकते - सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने नौकरी से जुड़े एक मामले में एक बड़ा ही अहम फ़ैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि अगर किसी कर्मचारी की मृत्यु के बाद उसके परिवार के सदस्य को दया या अनुकंपा के आधार पर नौकरी मिलती है, तो वह उस नौकरी में किसी ऊँचे पद या प्रमोशन का दावा नहीं कर सकता।

मामला तमिलनाडु का था, जहाँ दो लोगों को अपने पिता की मृत्यु के बाद सफ़ाई कर्मचारी की नौकरी मिली थी। बाद में उन्होंने जूनियर असिस्टेंट के पद पर प्रमोशन की मांग की, जिसे हाईकोर्ट ने मान लिया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इस फ़ैसले को पलट दिया।

कोर्ट ने साफ़ कहा, "दया के आधार पर नौकरी इसलिए दी जाती है ताकि परिवार को अचानक आए संकट से सहारा मिल सके। इसका मकसद पूरा हो जाने के बाद आप यह दावा नहीं कर सकते कि आपकी योग्यता के आधार पर आपको ऊँचा पद दिया जाए।" कोर्ट ने यह भी कहा कि यह एक रियायत है, आपका अधिकार नहीं। सरकारी नौकरियों में सबको बराबर का मौका मिलना चाहिए, और ऐसी नियुक्तियाँ उस नियम का एक अपवाद होती हैं।