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भारत में इलेक्ट्रिक गाड़ियों (EVs) को लेकर माहौल तेज़ी से बदल रहा है। अब ये सिर्फ़ कुछ शौक़ीन लोगों की पसंद नहीं, बल्कि आम सड़कों पर दौड़ती हक़ीक़त बन रही हैं। एक नई रिपोर्ट ने इस बदलाव के पीछे की अनोखी भारतीय रणनीति का ख़ुलासा किया है। रिपोर्ट के मुताबिक़, भारत सिर्फ़ इलेक्ट्रिक गाड़ियों पर ही नहीं, बल्कि एक “मल्टी-फ़्यूल” यानी कई तरह के ईंधनों वाले रास्ते पर चलकर इस बड़ी मंज़िल को हासिल कर रहा है।
क्या है ये भारत का “मल्टी-फ़्यूल” प्लान?
दुनिया के बाक़ी देश जहां सीधे पेट्रोल-डीज़ल से इलेक्ट्रिक गाड़ियों की तरफ़ जा रहे हैं, वहीं भारत ने एक बीच का रास्ता निकाला है। इंडिया एनर्जी स्टोरेज अलायंस (IESA) की रिपोर्ट बताती है कि भारत में इलेक्ट्रिक गाड़ियों के साथ-साथ CNG, हाइब्रिड (पेट्रोल/डीज़ल + इलेक्ट्रिक), फ़्लेक्स-फ़्यूल (एक से ज़्यादा ईंधन पर चलने वाली) और हाइड्रोजन गाड़ियों पर भी ज़ोर दिया जा रहा है।
सोचिए, ये बिल्कुल वैसा ही है जैसे आप सीधे 10वीं मंज़िल पर लिफ़्ट से जाने की बजाय, सीढ़ियों और एस्केलेटर का इस्तेमाल करते हुए आराम से ऊपर पहुँचें। CNG और हाइब्रिड गाड़ियाँ उसी सीढ़ी का काम कर रही हैं, जो लोगों को धीरे-धीरे पूरी तरह से इलेक्ट्रिक गाड़ियों के लिए तैयार कर रही हैं।
क्यों सफल हो रहा है ये मॉडल?
इस मिले-जुले रास्ते का सबसे बड़ा फ़ायदा ये है कि लोगों को एक झटके में महँगी इलेक्ट्रिक कार ख़रीदने का दबाव महसूस नहीं होता। वो CNG या हाइब्रिड जैसे सस्ते और कम प्रदूषण फैलाने वाले विकल्पों को अपनाकर भी पर्यावरण की मदद कर सकते हैं।
इस बदलाव में सरकार की नीतियां, इंडस्ट्री का निवेश और लोगों में बढ़ती जागरूकता भी अहम भूमिका निभा रही है। उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्य EV अपनाने में सबसे आगे हैं और देश की कुल EV बिक्री में आधे से ज़्यादा का योगदान इन्हीं राज्यों का है।
सरकारों का ये मिला-जुला नज़रिया और साफ़ ईंधन को बढ़ावा देने की कोशिश ही भारत की EV क्रांति को तेज़ रफ़्तार दे रही है, जो पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल बन सकती है।