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Up Kiran, Digital Desk: पूर्वोत्तर का रत्न कहे जाने वाले मणिपुर (Manipur) में एक बार फिर राजनीतिक स्थिरता और शांति बहाली को लेकर बड़ा फैसला लिया गया है. राज्य में जारी जातीय हिंसा (Ethnic Violence) और अशांति के मद्देनजर, केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति शासन (President's Rule) की अवधि को अगले छह महीने (6 Months Extension) के लिए और बढ़ा दिया है. यह फैसला न केवल मणिपुर के बिगड़ते हालात (Manipur Situation) की गंभीरता को दर्शाता है, बल्कि यह भी संकेत देता है कि केंद्र सरकार को अभी भी राज्य की कानून व्यवस्था (Law and Order in Manipur) को पटरी पर लाने और सामान्य स्थिति बहाल करने में समय लग रहा है. क्या इस विस्तार से राज्य में शांति लौट पाएगी, या यह नई चुनौतियों को जन्म देगा?
राष्ट्रपति शासन क्या है और मणिपुर में क्यों लगाया गया?
राष्ट्रपति शासन (President's Rule Explained) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत एक प्रावधान है, जो केंद्र सरकार को किसी राज्य की शासन व्यवस्था अपने हाथ में लेने की अनुमति देता है, यदि राज्य सरकार संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार काम करने में विफल रहती है. मणिपुर में पिछले कई महीनों से भड़की जातीय हिंसा (Manipur Ethnic Conflict) के कारण राज्य की कानून व्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई थी. मई 2023 से शुरू हुई यह हिंसा, मैतेई और कुकी समुदायों (Meitei Kuki Conflict) के बीच चल रहे विवाद का परिणाम थी, जिसमें सैकड़ों लोगों की जान गई और हजारों विस्थापित हुए. राज्य सरकार के लिए स्थिति को संभालना मुश्किल हो गया था, जिसके चलते केंद्र ने हस्तक्षेप करते हुए राष्ट्रपति शासन लागू किया था. इसका मतलब है कि राज्य का प्रशासन अब राज्यपाल (Governor) के माध्यम से सीधे केंद्र सरकार (Central Government) के नियंत्रण में है, और राज्य विधानसभा (Manipur Legislative Assembly) को निलंबित या भंग कर दिया गया है.
6 महीने का विस्तार: क्या कहता है यह फैसला?
राष्ट्रपति शासन के इस छह महीने के विस्तार (President's Rule Extension) से साफ है कि गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs) और केंद्र सरकार को अभी भी लगता है कि मणिपुर में हालात पूरी तरह से नियंत्रण में नहीं हैं और राज्य सरकार को फिर से शासन सौंपना जल्दबाजी होगी. यह फैसला राज्य में स्थायी शांति (Permanent Peace in Manipur) और सामान्यीकरण (Normalization) के लिए चल रहे प्रयासों की धीमी गति को भी दर्शाता है. इस अवधि के दौरान, केंद्र का उद्देश्य होगा कि वह विभिन्न जातीय समूहों के बीच विश्वास बहाली (Trust Building) के उपायों को तेज करे, विस्थापित लोगों के पुनर्वास (Rehabilitation of Displaced) की प्रक्रिया को आगे बढ़ाए, और राज्य में शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व (Peaceful Coexistence) के लिए एक स्थायी समाधान खोजे. इस विस्तार का मुख्य मकसद राज्य में सुरक्षा स्थिति (Security Situation) में सुधार लाना और सभी हितधारकों के बीच बातचीत के माध्यम से समाधान खोजना है.
मणिपुर का वर्तमान परिदृश्य: चुनौतियाँ और उम्मीदें
मणिपुर अभी भी एक नाजुक स्थिति में है. भले ही हिंसा की तीव्रता कुछ कम हुई हो, लेकिन विभिन्न समुदायों के बीच अविश्वास और तनाव अभी भी गहरा है. राहत शिविरों (Relief Camps) में रह रहे हजारों लोग अपने घरों को लौटने का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन सुरक्षा चिंताओं के कारण यह प्रक्रिया धीमी है.
प्रमुख चुनौतियाँ:
विश्वास की कमी (Lack of Trust): दोनों प्रमुख समुदायों के बीच गहरा अविश्वास बना हुआ है, जिससे सुलह के प्रयास मुश्किल हो रहे हैं.
हथियारों की उपलब्धता (Availability of Arms): अवैध हथियारों का प्रसार अभी भी एक बड़ी चिंता है, जिससे कभी भी हिंसा फिर से भड़क सकती है.
पुनर्वास (Rehabilitation): विस्थापित लोगों का सुरक्षित और सम्मानजनक पुनर्वास एक बड़ी मानवीय चुनौती है.
कानून व्यवस्था (Law and Order): दूरदराज के इलाकों में कानून व्यवस्था बनाए रखना और अपराधियों पर नकेल कसना अभी भी एक बड़ी चुनौती है.
राजनीतिक गतिरोध (Political Stalemate): निर्वाचित सरकार की अनुपस्थिति में, निर्णय लेने की प्रक्रिया में देरी हो सकती है और स्थानीय भागीदारी की कमी महसूस की जा सकती है.
आगे की राह: क्या केंद्र की रणनीति काम करेगी?
राष्ट्रपति शासन का विस्तार केंद्र सरकार को मणिपुर की स्थिति पर अधिक सीधा नियंत्रण रखने का अवसर देता है. इस अवधि का उपयोग करके, केंद्र को चाहिए कि वह न केवल सुरक्षा स्थिति पर ध्यान केंद्रित करे, बल्कि जातीय समूहों के बीच संवाद (Inter-ethnic Dialogue) को बढ़ावा दे, प्रभावी पुनर्वास नीतियां लागू करे, और दीर्घकालिक शांति के लिए एक रोडमैप तैयार करे. यह महत्वपूर्ण है कि केंद्र सरकार सभी हितधारकों, विशेषकर प्रभावित समुदायों के प्रतिनिधियों को शामिल करे, ताकि एक समावेशी और न्यायसंगत समाधान खोजा जा सके. मणिपुर का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि केंद्र सरकार इस विस्तारित अवधि का कितना प्रभावी ढंग से उपयोग करती है ताकि राज्य में स्थायी शांति और सद्भाव स्थापित हो सके.
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