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Up Kiran, Digital Desk: हम सब महात्मा गांधी को "राष्ट्रपिता" के नाम से जानते हैं, लेकिन यह जानकर आपको हैरानी होगी कि भारत सरकार ने उन्हें यह उपाधि कभी भी आधिकारिक तौर पर नहीं दी. जी हां, ऐसा कोई कानून, सरकारी प्रस्ताव या संवैधानिक आदेश नहीं है, जो उन्हें औपचारिक रूप से यह सम्मान देता हो. इस बात का खुलासा कई सूचना के अधिकार (RTI) याचिकाओं के जवाब में हुआ है, जिसमें सरकार ने साफ किया है कि गांधीजी को यह उपाधि देने का कोई आधिकारिक रिकॉर्ड मौजूद नहीं है.

तो फिर उन्हें "राष्ट्रपिता" क्यों नहीं कहा जा सकता?

इसका एक बड़ा संवैधानिक कारण है. भारतीय संविधान का अनुच्छेद 18(1) राज्य को किसी भी तरह की उपाधि देने से रोकता है, सिवाय शिक्षा या सेना से जुड़े सम्मानों के. इसका मतलब है कि अगर कोई सरकार ऐसा करना भी चाहे, तो संविधान इसकी इजाजत नहीं देता.

कैसे शुरू हुई "राष्ट्रपिता" की उपाधि?

तो फिर यह उपाधि आई कहां से? दरअसल, यह शब्द आजादी की लड़ाई के दौरान गांधीजी के प्रति सम्मान और प्रेम जताने के लिए उभरा.

सुभाष चंद्र बोस ने सबसे पहले कहा: इस शब्द का सबसे पहला दर्ज इस्तेमाल नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने 6 जुलाई, 1944 को सिंगापुर से एक रेडियो प्रसारण में किया था. उन्होंने गांधीजी को "Father of our Nation" कहकर संबोधित किया था.

सरोजिनी नायडू ने भी किया इस्तेमाल: इसके बाद, 28 अप्रैल, 1947 को सरोजिनी नायडू ने भी सार्वजनिक रूप से इस वाक्यांश का इस्तेमाल किया. ये सभी इस्तेमाल औपचारिक मान्यता नहीं, बल्कि लोगों के मन में बसे सम्मान का प्रतीक थे.

नेहरू ने इस शब्द को अमर कर दिया

30 जनवरी, 1948 को गांधीजी की हत्या के बाद इस शब्द को भारतीय जनमानस में गहराई से बसाने का काम देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने किया. राष्ट्र को संबोधित करते हुए उन्होंने दुखी मन से कहा, "The Father of the Nation is no more" (राष्ट्रपिता अब नहीं रहे). उनके इन शब्दों ने इस उपाधि को एक भावनात्मक वजन दिया और इसे राजनीतिक भाषणों, किताबों और मीडिया में हमेशा के लिए स्थापित कर दिया.

क्यों आज भी गूंजता है यह शब्द?

भले ही यह उपाधि आधिकारिक न हो, लेकिन यह आज भी इसलिए गूंजती है क्योंकि भारत की आजादी की लड़ाई में गांधीजी का नेतृत्व अद्वितीय था. उन्होंने अहिंसक सविनय अवज्ञा (सत्याग्रह) का रास्ता दिखाया, पूरे देश के आम लोगों को एक साथ जोड़ा और राष्ट्रीय आंदोलन का नैतिक और राजनीतिक चेहरा बन गए.