Up Kiran, Digital Desk: कभी आपके साथ ऐसा हुआ है कि किसी छोटी सी बात पर शुरू हुई बहस एक बड़े झगड़े में बदल गई हो? घर में, दोस्तों के साथ या ऑफिस में, अक्सर ऐसा होता है कि हम कहना कुछ चाहते हैं, सामने वाला समझ कुछ और लेता है, और फिर बात बिगड़ जाती है। हम सब सोचते हैं कि काश कोई ऐसा तरीका होता जिससे बिना लड़े-झगड़े भी अपनी बात कही जा सकती और दूसरे की बात समझी जा सकती।
खुशखबरी यह है कि ऐसा एक तरीका है। इसे कहते हैं - शांतिपूर्ण संवाद (Peaceful Communication)।
यह कोई रॉकेट साइंस नहीं है, बल्कि बात करने का एक ऐसा खूबसूरत तरीका है जो हमारे रिश्तों को मजबूत बनाता है और हमारी जिंदगी से तनाव को कम करता है।
क्या है यह शांतिपूर्ण संवाद: इसका मतलब चुप रहना या हमेशा 'हां' में 'हां' मिलाना बिल्कुल नहीं है। इसका असली मतलब है - अपनी बात को इज्जत से रखना और दूसरे की बात को समझने की नीयत से सुनना।
यह एक कला है, जो कहती है कि आपका मकसद बहस जीतना नहीं, बल्कि रिश्ते को बचाना और समस्या का हल निकालना होना चाहिए।
क्यों है यह इतना जरूरी: जब हम गुस्से में या ऊंची आवाज में बात करते हैं, तो सामने वाले का दिमाग हमारी बात को समझने के बजाय खुद का बचाव करने में लग जाता है। वह हमारी दलीलों को नहीं, बल्कि हमारे हमले को देखता है।
लेकिन जब हम शांति से बात करते हैं, तो:
गलतफहमियां दूर होती हैं: हम यह समझ पाते हैं कि सामने वाला असल में क्या कहना चाहता है।
भरोसा बढ़ता है: जब कोई हमारी बात को ध्यान से और बिना जज किए सुनता है, तो हमारा उस पर भरोसा बढ़ता है।
रिश्ते गहरे होते हैं: झगड़े कम होते हैं और प्यार बढ़ता है।
मानसिक शांति मिलती है: हर समय लड़ाई-झगड़े वाले माहौल से हमें छुटकारा मिलता है।
कैसे करें शांति से बात? ये रहे 5 आसान तरीके
बोलने से पहले सुनें: अक्सर हम सुनने के लिए नहीं, बल्कि जवाब देने के लिए सुनते हैं। सामने वाले को अपनी बात पूरी करने दें। उसे यह महसूस कराएं कि आप उसकी बात को अहमियत दे रहे हैं।
तुम' की जगह 'मैं' का इस्तेमाल करें: "तुम हमेशा लेट आते हो!" यह एक आरोप जैसा लगता है। इसकी जगह कहें, "जब तुम लेट आते हो, तो मुझे चिंता होती है।" इससे बात भी कह दी और हमला भी नहीं हुआ।
आवाज नहीं, दलीलें मजबूत रखें: अपनी आवाज को धीमा और शांत रखें। ऊंची आवाज हमेशा कमजोर दलीलों की निशानी होती है।
सही समय का इंतजार करें: अगर कोई पहले से ही गुस्से में या परेशान है, तो उस वक्त कोई गंभीर मुद्दा न उठाएं। बात करने के लिए सही समय और सही माहौल चुनें।
ब्रेक लेना भी ठीक है: अगर आपको लगता है कि बात बहुत ज्यादा बिगड़ रही है और गुस्सा बढ़ रहा है, तो यह कहने में कोई बुराई नहीं है कि, "चलो, हम इस पर 10 मिनट बाद बात करते हैं।" यह ब्रेक अक्सर जादू का काम करता है।
यह समझना कि हर कोई अपनी जगह पर सही हो सकता है, शांतिपूर्ण संवाद की पहली सीढ़ी है। यह एक प्रैक्टिस है, जिसे हमें अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में शामिल करना होगा। याद रखिए, दुनिया की बड़ी से बड़ी जंग भी बातचीत की टेबल पर ही खत्म होती है, तो हमारे छोटे-मोटे झगड़े क्या चीज हैं।




