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धर्म डेस्क। भगवान शिव को श्रावण या सावन मास अति प्रिय है। इस पावन मास में भोलेनाथ अपना आशीर्वाद बरसाने के लिए खुद पृथ्वी पर पधारते हैं और श्रद्धालु भी अपने आराध्य के आगमन की खुशी में कांवड़ यात्रा आदि विभिन्न माध्यमों से उन्हें रिझाते हैं। सावन मास से भगवान शिव के जुड़ाव के पीछे भी प्यारा सा रहस्य छिपा है।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान भोलेनाथ सावन मास में ही पहली बार धरती पर अपनी ससुराल आए थे, जहां पर असंख्य नर- नारियों ने उनका भव्य स्वागत किया था। इससे प्रसन्न होकर शिव-शंभू ने सभी को मंगलकामना का आशीर्वाद दिया था।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार राजा दक्ष की पुत्री माता सती ने प्रतिज्ञा की थी कि वे पति के रूप में केवल भगवान शिव को ही स्वीकार करेंगी। जब राजा दक्ष ने उनकी बात नहीं मानी तो माता सती ने अपनी देह त्याग दी और हिमालय राज के घर में पार्वती के रूप में जन्म लिया। इसके बाद पार्वती ने भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की।

इस तरह कठोर तपस्या के बाद पार्वती का विवाह भोलेनाथ से संपन्न हुआ। पार्वती से विवाह के बाद भगवान भोलेनाथ सावन के महीने में ही पहली बार धरती पर अपनी ससुराल आए थे और वहां पर लाखों नर- नारियों के भव्य स्वागत से  प्रसन्न होकर सभी लोगों पर अपनी कृपा दृष्टि बरसाई थी।

सनातन आस्था के अनुसार पार्वती से विवाह के बाद भगवान शिव हर वर्ष सावन के महीने में पृथ्वी पर आते हैं और अपने भक्तों को आशीर्वाद देते हैं। उसी समय से सावन मास में पहाड़ों से जुड़ी धार्मिक यात्राएं अधिक होती है। लाखों श्रद्धालु हरिद्वार से गंगाजल लाकर सावन शिवरात्रि पर भोलेनाथ का अभिषेक करते हैं। कांवड़ियों को भगवान शिव का गण माना जाता है। 
 

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