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Up Kiran, Digital Desk: किसान जब खेत में बीज बोता है, तो वह सिर्फ़ फ़सल नहीं बोता, बल्कि अपने परिवार के लिए कुछ सपने भी बोता है. उसे उम्मीद होती है कि कुछ महीनों की मेहनत के बाद जब फ़सल तैयार होगी, तो घर में खुशहाली आएगी. लेकिन कर्नाटक के हावेरी जिले के लहसुन किसानों के लिए ये सपने इस साल टूटते हुए नज़र आ रहे हैं.

किसानों पर दोहरी मार: इस साल लहसुन उगाने वाले किसानों पर मानो मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है. पहले तो बेमौसम हुई तेज़ बारिश ने उनकी खड़ी फ़सल को काफ़ी नुकसान पहुँचाया. जो लहसुन खेत में पक कर तैयार हो रहा था, ज़्यादा पानी के कारण उसकी क्वालिटी खराब हो गई. बहुत से किसानों की फ़सल तो खेतों में ही सड़ने लगी.

लेकिन किसान तो हिम्मत का दूसरा नाम है. जैसे-तैसे अपनी बची-खुची फ़सल को समेटकर जब वे मंडी पहुँचे, तो उन्हें एक और बड़ा झटका लगा. बाज़ार में लहसुन के दाम इतने ज़्यादा गिर गए हैं कि उनकी लागत निकालना भी मुश्किल हो गया है. जिस लहसुन के अच्छे दाम मिलने की उन्हें उम्मीद थी, आज उसे कोई पूछने वाला नहीं है.

लागत ज़्यादा, कमाई कुछ नहीं: एक किसान बताता है कि लहसुन की खेती में बीज, खाद, मज़दूरी मिलाकर अच्छा-खासा ख़र्च आता है. उन्होंने कर्ज़ लेकर या अपनी जमा-पूंजी लगाकर खेती की थी, इस उम्मीद में कि फ़सल बिकने पर सब ठीक हो जाएगा. पर आज हालात ऐसे हैं कि मंडी तक फ़सल लाने का भाड़ा भी जेब से देना पड़ रहा है. उनकी आँखों में निराशा साफ़ देखी जा सकती है.

यह कहानी सिर्फ हावेरी की नहीं, बल्कि देश के कई कोनों में किसानों की यही सच्चाई है. वे मौसम की मार और बाज़ार के उतार-चढ़ाव के बीच बुरी तरह पिस रहे हैं. अब उन्हें बस सरकार से थोड़ी मदद की उम्मीद है, ताकि उनका हौसला पूरी तरह न टूट जाए.