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Up Kiran, Digital Desk: गणेश चतुर्थी केवल पर्व नहीं, बल्कि श्रद्धा और आनंद का ऐसा उत्सव है जब संपूर्ण वातावरण मोदक की मिठास और भक्ति के मंत्रों से गुंजायमान हो उठता है। माना जाता है कि विघ्नहर्ता गणपति जब घर-आंगन में विराजते हैं, तो उनके चरणों के साथ सुख, समृद्धि और ज्ञान भी हमारे जीवन में स्थापित होता है। किंतु, यदि पूजा-विधि और परंपराओं का ध्यान न रखा जाए तो भक्ति-भाव के बावजूद उसका पूरा फल प्राप्त नहीं होता। आइए जानें, गणेश चतुर्थी पर वे पांच प्रमुख गलतियाँ जिनसे हमें अवश्य बचना चाहिए—
1. गलत दिशा में मूर्ति ना रखें
कल्पना कीजिए—एक घर के कोने में सुंदर गणेश प्रतिमा विराजमान है, लेकिन दिशा गलत होने से पूरे वातावरण की ऊर्जा रुकावट महसूस कर रही है। वास्तु के अनुसार गणेश जी की मूर्ति उत्तर या ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में स्थापित करनी चाहिए। यह दिशाएं ज्ञान और सकारात्मक ऊर्जा की प्रतीक मानी जाती हैं।
यदि मूर्ति को दक्षिण दिशा में रखा जाए तो यह सौभाग्य के प्रवाह को रोक सकती है। सही दिशा में प्रतिष्ठा करने पर मानो सूर्य की किरणों जैसी दिव्य शक्ति पूरे घर में फैल जाती है।
2. टूटी या खंडित मूर्ति की पूजा ना करें
भगवान गणेश का स्वरूप संपन्नता और पूर्णता का द्योतक है। ऐसे में टूटी-फूटी या खंडित मूर्ति की पूजा करना अधूरेपन और नकारात्मकता को आमंत्रित कर सकता है। जब आप मंदिर की शोभायमान प्रतिमाओं को देखते हैं, तो उनका सौंदर्य स्वयं ही भक्ति-भाव को जागृत करता है।
इसी प्रकार, घर में स्थापना के लिए संपूर्ण और सुंदर मूर्ति चुनना आवश्यक है। पूजा शुरू करने से पहले ध्यानपूर्वक देख लें कि प्रतिमा पर कोई दरार, खरोंच या खंडन न हो। एक पूर्ण मूर्ति न केवल सौंदर्य का प्रतीक है, बल्कि यह आपके संकल्प और श्रद्धा की सच्चाई को भी दर्शाती है।
3. चंद्र दर्शन से बचें
गणेश चतुर्थी की रात आसमान में चमकता चंद्रमा भले ही मन मोह ले, लेकिन परंपरा कहती है कि इस दिन उसका दर्शन करना अशुभ है। पौराणिक कथा अनुसार, एक बार अहंकार में चंद्रमा ने गणेश जी का उपहास किया था, और तभी से यह नियम बना कि इस रात चंद्र दर्शन से मिथ्या दोष लगता है।
यदि गलती से चंद्रमा दिख जाए, तो शांत भाव से गणपति मंत्र “ॐ गं गणपतये नमः” का जप करने से दोष का निवारण हो जाता है। इस नियम का गहरा संदेश यह भी है कि उपहास और अहंकार से सदैव बचना चाहिए।
4. गलत प्रसाद का भोग न लगाएं
गणपति बप्पा का हृदय बालसुलभ माना जाता है। वे भोग में मोदक, लड्डू, और फल बेहद प्रिय मानते हैं। सात्विक और शुद्ध भोजन ही उन्हें अर्पित करें। लहसुन, प्याज या मांसाहारी व्यंजन जैसे तामसिक पदार्थ गणपति पूजन के वातावरण को दूषित कर देते हैं।
इस दिन तुलसी पत्र का भोग भी निषिद्ध है, क्योंकि पौराणिक मान्यता है कि गणेश जी के पूजन में इसकी स्वीकृति नहीं है। जब भोग शुद्ध और सात्विक हो, तो लगता है जैसे प्रतिमा के सामने रखा हर मोदक श्रद्धा से भरा हुआ प्रसन्नता का दीप बनकर चमक रहा हो।
5. साफ-सफाई नजरअंदाज न करें
जहां भगवान का वास होता है, वहां स्वच्छता स्वयं महत्व रखती है। सोचिए, अगर पूजा का स्थान बिखरा हुआ हो, गंदगी या अव्यवस्था हो, तो वातावरण की सकारात्मक ऊर्जा मंद पड़ जाती है।
गणेश स्थापना से पहले पूरे स्थल को गंगाजल छिड़ककर शुद्ध करना चाहिए। ताजे फूलों से सजी माला, सुलगती हुई धूपबत्ती और दीपक की सुनहरी लो—यह सब मिलकर वातावरण को दिव्यता से आलोकित कर देते हैं। तभी लगता है जैसे घर-आंगन में देवलोक का उत्सव उतर आया हो।
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