img

Up Kiran, Digital Desk: पितृ पक्ष का समय अपने पूर्वजों को याद करने और उनकी आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करने का होता है। ऐसा माना जाता है कि इन दिनों में किए गए श्राद्ध, तर्पण और दान का फल सीधा हमारे पितरों तक पहुंचता है। शास्त्रों में कई ऐसे व्रतों का जिक्र है जो पितरों को मुक्ति दिलाते हैं, लेकिन इंदिरा एकादशी का व्रत सबसे शक्तिशाली माना गया है।

यह एकादशी पितृ पक्ष के दौरान आती है, इसलिए इसका महत्व और भी ज्यादा बढ़ जाता है। यह व्रत न केवल व्रत रखने वाले के पापों को खत्म करता है, बल्कि उसके पितरों को यमलोक की यातनाओं से मुक्त कराकर सीधे स्वर्ग में स्थान दिलाता है।

क्या है इंदिरा एकादशी की कथा?

सतयुग की बात है। महिष्मति नाम के राज्य में इंद्रसेन नाम के एक बहुत ही धर्मी और प्रतापी राजा थे। उनके राज्य में प्रजा हर तरह से सुखी और संपन्न थी। एक दिन, जब राजा अपनी सभा में बैठे थे, तो वहां देवर्षि नारद का आगमन हुआ।

राजा ने नारद मुनि का आदर-सत्कार किया और उनसे आने का कारण पूछा। नारद जी ने बताया, "हे राजन! मैं यमलोक गया था, जहाँ मैंने आपके पिता को देखा। वे बड़े धर्मात्मा थे, लेकिन जीवन में उनसे एकादशी का व्रत टूट गया था, जिस वजह से उन्हें यमलोक में रहना पड़ रहा है।"

नारद जी ने आगे कहा, "आपके पिता ने आपके लिए एक संदेश भेजा है। उन्होंने कहा है कि यदि उनका पुत्र, इंद्रसेन, आने वाली इंदिरा एकादशी का व्रत पूरी श्रद्धा से करे, तो उस व्रत के पुण्य से उन्हें यमलोक से मुक्ति मिल जाएगी और वे स्वर्ग जा सकेंगे।"

यह सुनकर राजा इंद्रसेन ने तुरंत नारद जी से व्रत की पूरी विधि पूछी। नारद जी ने उन्हें बताया कि कैसे सुबह उठकर पितरों का श्राद्ध और तर्पण करें, ब्राह्मणों को भोजन कराएं, और फिर दिनभर फलाहार रहकर भगवान विष्णु की पूजा और रात में जागरण करें। अगले दिन, ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देने के बाद ही व्रत का पारण करें।

जब इंदिरा एकादशी आई, तो राजा इंद्रसेन ने देवर्षि नारद के बताए अनुसार ही पूरे विधि-विधान से व्रत रखा। व्रत के पुण्य प्रभाव से राजा के पिता यमलोक से मुक्त होकर सीधे स्वर्ग चले गए और आकाश से उन्होंने अपने पुत्र को आशीर्वाद दिया। इस व्रत के प्रभाव से अंत में राजा इंद्रसेन को भी स्वर्ग की प्राप्ति हुई।

इसीलिए माना जाता है कि जो कोई भी इस एकादशी का व्रत सच्चे मन से करता है या इसकी कथा को सुनता भी है, उसके पितरों को नरक के कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।