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Up Kiran, Digital Desk: रामचरितमानस का सुंदरकांड सिर्फ हनुमान जी की वीरता की कहानी नहीं है, बल्कि यह हमें जीवन की मुश्किलों का सामना करने और माया पर विजय पाने की प्रेरणा भी देता है। आज हम सुंदरकांड की एक ऐसी ही चौपाई पर बात करेंगे, जो हमें बहुत कुछ सिखाती है:

"निसिचरि एक सिंधु महँ रहई। करि माया नभु के खग गहई॥ जीव जंतु जे गगन उड़ाहीं। जल बिलोकि तिन्ह कै परिछाहीं॥"

इस चौपाई का सीधा मतलब यह है कि समुद्र में एक राक्षसी रहती थी, जो अपनी माया (जादू-टोने) से आकाश में उड़ने वाले पक्षियों को पकड़ लेती थी। वह यह कैसे करती थी? वह पानी में उड़ते हुए जीवों की परछाईं देखकर, उसी परछाईं को पकड़कर उन्हें फँसा लेती थी। यानी, वह असल चीज़ को नहीं, बल्कि उसकी छाया या भ्रम को निशाना बनाती थी।

यह चौपाई क्यों है खास?

यह चौपाई हमें सिखाती है कि जीवन में कई बार हम भी मायावी शक्तियों या भ्रम का शिकार हो जाते हैं। जैसे वह राक्षसी पक्षियों की परछाईं को पकड़ती थी, वैसे ही हमारी बुराइयां, हमारे लालच, या हमारा अहंकार हमारे मन में एक भ्रम पैदा कर सकते हैं। वे हमें असली लक्ष्य से भटका देते हैं।

हनुमान जी जब समुद्र पार कर रहे थे, तब रास्ते में कई बाधाएं आईं। सुरसा, सिंहिका जैसी राक्षसी इसी माया और भ्रम का प्रतीक हैं। वे हनुमान जी को रोकने की कोशिश करती हैं, लेकिन हनुमान जी अपनी बुद्धि, बल और प्रभु श्रीराम में अटूट भक्ति के बल पर इन सब पर विजय पाते हैं। वे समझ जाते हैं कि असली चीज़ क्या है और माया क्या है।

जीवन में इसके मायने:

यह चौपाई हमें याद दिलाती है कि संसार एक तरह का सागर है और इसमें कई मायावी बाधाएं हैं। लेकिन अगर हम हनुमान जी की तरह अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित रखें और प्रभु की भक्ति में लीन रहें, तो हम किसी भी भ्रम या माया पर आसानी से विजय पा सकते हैं।

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