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Up kiran,Digital Desk : कर्नाटक में कांग्रेस सरकार के ढाई साल पूरे हो गए हैं, और इसी के साथ वो सियासी तूफान भी उठ खड़ा हुआ है, जिसका डर काफी समय से था. मुख्यमंत्री की कुर्सी को लेकर सिद्धारमैया और उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार के बीच चल रही अंदरूनी खींचतान अब खुलकर दिल्ली पहुंच गई है. डीके शिवकुमार के गुट के माने जाने वाले 10 विधायकों ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे से मुलाकात की है, जिसके बाद से राज्य में नेतृत्व परिवर्तन की अटकलें तेज हो गई हैं.

डीके का 'मासूम' जवाब- 'मैं तो बीमार हूं, मुझे क्या पता'

इस पूरे खेल का सबसे दिलचस्प पहलू है खुद डीके शिवकुमार का बयान. जब आजतक ने उनसे इस बैठक के बारे में पूछा, तो उन्होंने बड़ी ही मासूमियत से कहा, "मुझे इस बारे में कुछ नहीं पता. मुझे नहीं मालूम कि विधायक दिल्ली क्यों गए हैं." उन्होंने अपनी खराब तबीयत का हवाला देते हुए कहा कि वह कुछ दिनों से घर से बाहर भी नहीं निकले हैं.

यह 'संयोग' या 'प्रयोग'?

डीके शिवकुमार भले ही अनजान बन रहे हों, लेकिन राजनीति के जानकार इसे महज संयोग नहीं मान रहे. यह 'संयोग' नहीं है कि यह बैठक ठीक उस दिन हुई है, जब कर्नाटक में कांग्रेस सरकार ने अपने ढाई साल पूरे कर लिए हैं. और यह भी संयोग नहीं है कि दिल्ली पहुंचने वाले सभी 10 विधायक उसी गुट के हैं, जो सिद्धारमैया की जगह डीके शिवकुमार को मुख्यमंत्री की कुर्सी पर देखना चाहता है.

इसे आधिकारिक तौर पर भले ही "बिजनेस मीटिंग" का नाम दिया जा रहा हो, लेकिन असल में इसे कांग्रेस आलाकमान पर दबाव बनाने की एक नई रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है.

कहां से शुरू हुई 'ढाई-ढाई साल' की कहानी?

आपको याद दिला दें कि जब कर्नाटक में कांग्रेस को प्रचंड बहुमत मिला था, तब मुख्यमंत्री पद के लिए सिद्धारमैया और डीके शिवकुमार के बीच जबरदस्त खींचतान हुई थी. तब यह चर्चा जोरों पर थी कि पार्टी ने "ढाई-ढाई साल" के फॉर्मूले पर सहमति बनाई है, जिसके तहत पहले ढाई साल सिद्धारमैया और बाकी के ढाई साल डीके शिवकुमार मुख्यमंत्री रहेंगे.

लेकिन हाल ही में सिद्धारमैया ने साफ कर दिया है कि वह पूरे पांच साल मुख्यमंत्री बने रहेंगे, जिससे डीके खेमे में बेचैनी बढ़ गई है. हालांकि, डीके शिवकुमार सार्वजनिक रूप से खुद को पार्टी का वफादार सिपाही बता रहे हैं. उनका कहना है कि वह पार्टी के हर निर्देश का पालन करेंगे और सीएम सिद्धारमैया के लिए खुश हैं.

एक तरफ जहां डीके शिवकुमार सार्वजनिक रूप से संयम दिखा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ उनके ही गुट के विधायकों का दिल्ली कूच करना एक अलग ही कहानी बयां करता है. साफ है कि कर्नाटक कांग्रेस में अंदर ही अंदर पक रही खिचड़ी अब बाहर आ चुकी है. अब देखना यह है कि कांग्रेस आलाकमान इस 'पावर-प्ले' को कैसे संभालता है, और क्या कर्नाटक में नेतृत्व का ऊंट किसी और करवट बैठेगा.