(पवन सिंह)
आज कल मीडिया और परचून की दुकान में कोई फर्क नहीं रह गया है...एक बनिया हल्दी, धनिया, मिर्च-मसाला बेंच रहा और दूसरा "बनिया मीडिया" सत्ता से पैसा लेकर नफरत बेंच रहा है। दोनों ओर बिजनेस है..इधर खबरों का बिजनेस है..!! वाह-वाह करती खबरों का बिजनेस..चरणों में लोटने और माल कमाने का बिजनेस..!! इससे ज्यादा मीडिया का कोई बहुत सार्थक रोल अब नहीं रह गया है..!! यह दुर्दांत स्थिति इतनी भयावह हो चली है कि देश आजादी के बाद अपने पतन के सबसे भयावह दौर की ओर बढ़ चुका है और लोग इस बर्बादी का तालियां बजाकर स्वागत कर रहे हैं...!! आर्थिक असमानता और मध्यम वर्ग का तेजी से गरीबी रेखा की ओर बढ़ते जाना इसका ताजा उदाहरण है। इससे भी ज्यादा दुखद यह है मध्यम वर्ग ही "INDIAN STATE" के संदर्भ में वानरनुमा दंत चियारता हुआ, लाहालोट पड़ा है और राष्ट्रवादी हुआ पड़ा है। हिटलर के तथाकथित राष्ट्रवाद से कापी-पेस्ट कर सबसे सड़ांध भरा यह तथाकथित हास्यास्पद राष्ट्रवाद इस देश के 85 से 90% जनता को ठिकाने लगा रहा है। यह 85-90% जनता दरअसल भारत में रहती है और शेष बची खाई-अघाई-चौंडाई और संसाधनों को डकारती 15% जनता INDIAN STATE में रहती है।
भारत में दो भारत बसते हैं यह कथन अनेक लोगों ने अनेक बार दोहराया है.. इसलिए उक्त कथन को किसी एक व्यक्ति के संदर्भ में ये उल्लेखित करना न्यायोचित नहीं होगा।
वर्ष, 1911 में जब यूरोप के एक दार्शनिक ‘काउंट कैसरलिंग’ भारत भ्रमण पर आये तो वापस लौटकर कहा कि- "India is a rich country where poor people lives....हिंदी में इसका अर्थ है..
‘भारत एक अमीर देश है पर यहाँ गरीब लोग रहते हैं।’
दक्षिण अफ्रीका के एक लेखक Ronald Segal ने भी इसी तरह की टिप्पणी अपनी किताब में लिखी है जिसका नाम है-‘Crisis of India...इस किताब में उन्होंने लिखा है कि- "India is a rich country inhabited by poor people"..यानी कि ‘भारत गरीब लोगों द्वारा निवास करने वाला एक अमीर देश है।’
RSS र प्रमुख ‘मोहन भागवत’ ने भी अनेक मौकों पर यही बात दोहराई है कि- ‘भारत एक अमीर देश है पर यहाँ के लोग गरीब हैं। दरअसल यह सारे बयान भारत और INDIAN STATE के दो चेहरों को उल्लेखित करते हैं और इस देश की धर्मभीरू व वैचारिक रूप से अर्ध चेतना में अपने जीवन से मृत्यु तक के सफर को काटती जनता के असल कैरेक्टर को सामने रखती है। यह अजब सी लचर वैचारिक जनता है जो भी व्यक्ति इसके अधिकारों के लिए ही आवाज उठाते उसी के खिलाफ "वानरनुमा दंत चियारानुभूति" प्रदर्शित करती है।
करीब दो साल पहले हुए एक अध्ययन ने भारत और INDIAN STATE के बीच असमानता का जबरदस्त अध्ययन प्रस्तुत किया था।
विश्व असमानता लैब के अध्ययन विषय -"भारत में आय और धन असमानता" को पढ़िए , यह रिपोर्ट आपकी आंखें खोल देगी...विषय "1922-2023 अरबपति राज का उदय" शीर्षक वाले प्रस्तुत पेपर के अनुसार वर्ष-2014-15 और 2022-23 के बीच भारत और INDIAN STATE के बीच मतलब गरीब-अमीर के बीच खाईं खतरनाक स्तर तक बढ़ी है। पेपर के अनुसार, आर्थिक असमानता के नजरिए से अंतरराष्ट्रीय मानक के अनुसार भारत में असमानता अपने चरम स्तर पर है। वित्तीय वर्ष, 2022-23 में राष्ट्रीय आय का 22.6% हिस्सा केवल शीर्ष 1% के पास लोगों के पास गया, जो 1922 के बाद सबसे ज्यादा है। जबकि भारत में रह रही शीर्ष 1% आबादी के पास संपत्ति में 40.1% हिस्सेदारी आई और धन असमानताएं बढ़ीं। ऑक्सफेम की रिपोर्ट के अनुसार, वर्तमान में भारतीय आबादी के शीर्ष 10% लोगों के पास कुल राष्ट्रीय संपत्ति का 77% हिस्सा है, जबकि 670 मिलियन भारतीय, जो सबसे ज्यादा गरीब हैं, उनकी संपत्ति में केवल 1% की वृद्धि देखी गई है। हालात यह हैं कि आम भारतीय अपने स्वास्थ्य देखभाल तक की पहुंच बना पाने में सक्षम नहीं है।
आक्सफेम की इस रिपोर्ट के अनुसार 63 मिलियन भारतीय जनता हर साल स्वास्थ्य देखभाल की लागत के कारण गरीबी में चली जाती है। भारत में लगभग लगभग हर सेकंड दो लोग स्वास्थ्य कारणों से गरीब हो जाते है। बीमार होने पर उनकी जमा पूंजी, खेत, मकान सब स्वाहा हो जाते हैं...यह हालात डरावने हैं।
स्वास्थ्य सेवाओं का निजीकरण और सरकारी स्तर पर स्वास्थ्य सेवाओं पर नाकाफी खर्च "भारत स्टेट" में रहने वाली जनता के लिए बड़ी मुसीबत बनता जा रहा है। यही हाल शिक्षा के स्तर हो चले हैं।
अब अगर भारत स्टेट के लोगों के लिए INDIAN STATE के समानांतर लड़ने/आवाज उठाने की बात करने पर यही मरेले लोग ही चिल्लाने लगें कि मुझे पड़े रहने दो इसी "सीवेजनुमा सौंदर्य" में तो इन्हें यहीं छोड़ कर आगे चल देना चाहिए क्योंकि ये इसी लायक हैं। इनसे और इनकी दुर्दशा से किसी को भी सहानुभूति नहीं रखनी चाहिए। पूंजीवाद का दंश रूस से बेहतर कौन समझ सकता है.. लेकिन वहां की जागरूक आवाम "रशियन स्टेट" से लड़ गई और एक नया देश बनाया। फिलहाल फिर लिख रहा हूं यह देश शिक्षा, चिकित्सा, अर्थव्यवस्था, रोजगार, रोजी-रोटी, आन्तरिक सुरक्षा, सामरिक सुरक्षा...के सबसे भयावह दौर की ओर बढ़ रहा है..इसे स्वीकार करें या न करें।
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