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Up Kiran, Digital Desk: भारत के लिए एक बड़ी कूटनीतिक जीत और आतंकवाद के खिलाफ वैश्विक लड़ाई में एक महत्वपूर्ण कदम के रूप तौर पर, अमेरिका ने 'द रेजिस्टेंस फ्रंट' (TRF) को एक आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया है। भारत ने इस फैसले का खुले दिल से स्वागत किया है और इसे दोनों देशों के बीच आतंकवाद विरोधी सहयोग की मजबूत पुष्टि बताया है।

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन के साथ अपनी बातचीत के दौरान इस निर्णय को "आतंकवाद विरोधी संबंधों की एक मजबूत पुष्टि" करार दिया। उन्होंने जोर देकर कहा कि आतंकवाद एक गंभीर वैश्विक खतरा है और इसके खिलाफ मिलकर काम करना बेहद ज़रूरी है।

कौन है TRF और क्यों लगा प्रतिबंध? द रेजिस्टेंस फ्रंट' (TRF) एक आतंकवादी समूह है जो पाकिस्तान स्थित प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा (LeT) का एक प्रॉक्सी संगठन (प्रतिनिधि संगठन) है। यह जम्मू-कश्मीर में सक्रिय है और कई आतंकी हमलों के लिए जिम्मेदार रहा है। विशेष रूप से, TRF ने कश्मीर घाटी में नागरिकों, सुरक्षा बलों और अल्पसंख्यकों को निशाना बनाकर कई हिंसक वारदातें की हैं, जिससे क्षेत्र में भय और अस्थिरता का माहौल बना है। अमेरिका ने भी अपने बयान में TRF द्वारा निर्दोष नागरिकों की हत्याओं और आतंकवाद के लिए अपनी जिम्मेदारी स्वीकार करने का हवाला दिया है।

भारत की लंबी लड़ाई और वैश्विक समर्थन भारत लंबे समय से सीमा पार आतंकवाद और पाकिस्तान से संचालित होने वाले विभिन्न आतंकवादी समूहों के खिलाफ अंतर्राष्ट्रीय कार्रवाई की मांग करता रहा है। TRF पर अमेरिकी प्रतिबंध भारत की इस मांग को मिली एक बड़ी सफलता है। यह दिखाता है कि कैसे भारत और अमेरिका आतंकवाद से निपटने के लिए एक साझा रणनीति पर काम कर रहे हैं।

यह पहला मौका नहीं है जब अमेरिका ने भारत की चिंताओं को समझते हुए किसी आतंकवादी संगठन या व्यक्ति पर प्रतिबंध लगाया हो। इससे पहले भी, अमेरिका ने जैश-ए-मोहम्मद (JeM) के प्रमुख मसूद अजहर, लश्कर-ए-तैयबा (LeT) के संस्थापक हाफिज सईद और हिजबुल मुजाहिदीन (HM) के प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन जैसे खूंखार आतंकवादियों को वैश्विक आतंकवादी घोषित किया है। ये कदम भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण रहे हैं और आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के समर्थन को दर्शाते हैं।

इस नए प्रतिबंध से TRF के लिए अपनी गतिविधियों को अंजाम देना, धन जुटाना और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर समर्थन हासिल करना बेहद मुश्किल हो जाएगा। यह कदम न केवल जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद से लड़ने में मदद करेगा, बल्कि भारत और अमेरिका के बीच रणनीतिक साझेदारी को भी और मजबूत करेगा

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