
Up Kiran, Digital Desk: मनोविज्ञान में एक मील का पत्थर माने जाने वाला मास्लो का यह सिद्धांत बताता है कि मानव की ज़रूरतें पाँच स्तरों में बँटी हैं – सबसे नीचे शारीरिक ज़रूरतें (जैसे भोजन, पानी), फिर सुरक्षा, स्नेह और संबंध, आत्म-सम्मान और अंत में आत्म-बोध (Self-actualization)। यह सिद्धांत आम तौर पर यह सुझाव देता है कि निचले स्तर की ज़रूरतें पूरी होने के बाद ही इंसान उच्च स्तर की ज़रूरतों की ओर बढ़ता है।
उन्होंने विस्तार से समझाया कि कल्पना ही वह पहली चीज़ है जो हमें किसी भी ज़रूरत को 'पहचानने' और उसे पूरा करने का 'तरीका खोजने' में मदद करती है। मेनन के अनुसार, कल्पना के बिना, मानव जाति एक पशु के समान होती जो केवल अपनी तात्कालिक, जैविक ज़रूरतों पर प्रतिक्रिया करती।
मेनन कहते हैं, "कल्पना के बिना, आदिमानव यह कैसे सोच पाता कि उसे भोजन या आश्रय की ज़रूरत है? वह केवल एक जीव होता जो बस प्रतिक्रिया करता। लेकिन कल्पना की शक्ति ने उसे अपनी वर्तमान स्थिति से परे सोचने और एक बेहतर भविष्य की कल्पना करने में सक्षम बनाया।"
उनका तर्क है कि जब तक कोई व्यक्ति किसी चीज़ की कल्पना नहीं कर सकता, तब तक वह उस चीज़ को अपनी ज़रूरत के रूप में पहचान ही नहीं सकता और न ही उसे प्राप्त करने की दिशा में काम कर सकता है। मेनन के अनुसार, मानव जाति की सारी प्रगति – आग की खोज से लेकर पहिए के आविष्कार तक, और आज के जटिल तकनीक तक – कल्पना की ही देन है।
के के मेनन का यह विचार मास्लो के पदानुक्रम में एक दिलचस्प आयाम जोड़ता है, जो मानव प्रेरणा और प्रगति के मूल में कल्पना की मूलभूत भूमिका पर प्रकाश डालता है। यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या वास्तव में कल्पना ही वह अदृश्य सीढ़ी है जिस पर चढ़कर इंसान अपनी पहली ज़रूरत को पहचानता और फिर बाकी सभी को पूरा करता है।
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