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राजस्थान इलेक्शन के लिए भारतीय जनता पार्टी ने लगभग सभी जगह से प्रत्याशी खड़े किए हैं। बीजेपी ने इस बार नए पुराने चेहरों पर दांव खेला है। वसुंधरा राजे के करीबी पूर्व मंत्री राजपाल सिंह शेखावत, कृष्णेंद्र कौर दीपा, युनुस खान, कैलाश मेघवाल का टिकट काट दिया गया है। पूर्व विधानसभा अध्यक्ष कैलाश मेघवाल निर्दलीय इलेक्शन लड़ेंगे।

मेघवाल भैरोसिंह शेखावत के समय के बीजेपी का एकमात्र दलित चेहरा थे, किंतु पार्टी ने उनका टिकट काट दिया है। जबकि राजपाल सिंह शेखावत का राजपूत समाज पर असर माना जाता है। राजपूत समाज को बीजेपी का कोर वोट बैंक माना जाता है। सियासी जानकारों का कहना है कि बीजेपी के निर्णय से दलित राजपूत वोट बैंक पर असर पड़ सकता है।

वसुंधरा राजे के कट्टर समर्थक मेघवाल ने दो टूक में कहा कि वसुंधरा राजे के त्याग की वजह से उनका टिकट काट दिया गया है। वो बीजेपी आलाकमान को बताएंगे कि उनमें कितना दम है। मेघवाल ने निर्दलीय पर्चा दाखिल करने का ऐलान किया है। मेघवाल बीजेपी के दलित चेहरा माने जाते हैं। इसी प्रकार वसुंधरा राजे के समर्थक पूर्व प्रदेश अशोक परनामी का टिकट भी काट दिया गया है।

जयपुर के आदर्श नगर विधानसभा से इस बार नए चेहरे को उतारा गया है। परनामी वैश्य वर्ग का बडा चेहरा माने जाते हैं, किंतु इस बार उन्हें टिकट नहीं दिया गया है। वहीं पूर्व उद्योग मंत्री राजपाल सिंह शेखावत ने झोटवाड़ा से निर्दलीय इलेक्शन लड़ने का ऐलान किया है। शेखावत के बागी होने से जयपुर की झोटवाड़ा सीट से इलेक्शन लड़ रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौड़ के सामने मुश्किलें खड़ी हो सकती हैं।

सियासी जानकारों का कहना है कि राजस्थान की राजनीति में जाति बड़ा फैक्टर माना जाता है। देश के अन्य राज्यों की तरह यहां भी जातीय समीकरणों से हार जीत तय होती है। राजस्थान में दलितों की जनसंख्या 19% है। 33 में से 19 सीटों पर कांग्रेस का कब्जा है। इस बार बीजेपी ने केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल को इलेक्शन में बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है। भाजपा संदेश देना चाहती है कि वो दलित हितेषी है, किंतु जिस तरीके से उसने वयोवृद्ध दलित नेता कैलाश मेघवाल का टिकट काटा है उनका संदेश गलत जा सकता है।

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