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(पवन सिंह)

सत्ताएं और सत्ताधीशों की एक जबरदस्त खासियत होती है कि वो अंधों को भी आईने बेंच दिया करते हैं..!!! अंधों को भी यह एहसास करा देते हैं कि उनको जो स्याह नजर आ रहा है दरअसल वहीं उजाला है..!!! सत्ताएं अगर धूर्तों और तानाशाहों के पास चली जाएं तो उनके पिटारे में शब्दों के ऐसे-ऐसे तीर होते हैं कि अगर आप सतर्क नहीं रहे है तो वो आपके निवाले भी हलक से निकाल लेंगे और जयकारे भी लगवा देंगे..!!!  विगत कुछ सालों से "सनातन" शब्द झाड-पोछ के वाट्सअपीय पैकेजिंग में पैक करके मार्केट में बिकने के लिए डाला गया है। जिस सनातन शब्द को धर्म का जामा पहनाकर परोसा जा रहा है दरअसल वह चिर शाश्वत प्रकृति है न कि कोई धर्म..!!!

सनातन का अर्थ ही ग़लत समझाया जा रहा हैं। सनातन शब्द किसी धर्म से नहीं जुड़ा नहीं है... दरअसल यह इकलौता शब्द सीधे नेचर/प्रकृति के नियमों को परिभाषित करता है ...शाश्वत या 'सदा बना रहने वाला', यानी जिसका न आदि है न अंत...!! माना अगर इस गृह का अंत भी होता है तो भी यह गृह या तो हिमयुग में परिवर्तित हो जाएगा या गैसीय पिंड के रूप में या फिर अगर किसी ब्लैक होल में समाया तो किसी अन्य स्वरूप में ढल जाएगा...फिलहाल अभी तक नेचर ने इस गृह पर जीवन संचालन के जो सनातन नियम बना रखे हैं, वही सच हैं और सनातन हैं...!!

पृथ्वी की उत्पत्ति से लेकर अब तक नेचर सनातन रूप से संचालित हो रही है.... सूर्योदय हो रहा है... समुद्र का जल वाष्पित होकर बादल के रूप में ढल रहा है... वर्षा हो रही है... आक्सीजन वातावरण में है...ओजोन लेयर पृथ्वी के वायुमंडल की सबसे ऊपरी सतह पर मां के आंचल की तरह अभी भी है...यही सनातन है। दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि इसी सनातन नियम को मनुष्य ने तोड़ना शुरू कर दिया है जिसके नतीजे सामने आ रहे हैं...!!

पूरा "सनातन शब्द" अपनी ग्लैक्सी में "अब तक ज्ञात एक मात्र जीवन वाली पृथ्वी" को इसलिए बचाए हुए है क्योंकि यह शब्द सहअस्तित्व से जुड़ा है...!! नेचर की पूरी धुरी सनातनी है यानी कि सह अस्तित्व से जुड़ी है...!! अगर इसकी एक भी कड़ी दरकी की हिसाब-किताब खत्म...!! इस सनातनी कड़ी यानी सह अस्तित्व से यदि आप केवल मधुमक्खियों को ही निकाल दें तो पूरी पृथ्वी पर परागण प्रकिया ही नष्ट हो जाएगी। न अनाज पैदा होगा न ही फल। मनुष्य इस सनातनी धुरी का "अपशिष्ट" है...जो अपने लाभ के लिए सनातनी रूप से चले आ रहे जंगलों, पहाड़ों, नदियों, समुद्रों और भूगर्भीय संसाधनों को लूट रहा है...!! प्रकृति की सबसे खूबसूरत सनातनी प्रक्रिया को छिन्न-भिन्न कर रहा है...!!!  याद रखिए एक मधुमक्खी तक का औचित्य है लेकिन मनुष्य का नहीं..!!  

अगर मनुष्य पृथ्वी पर नहीं भी रहेगा तो पृथ्वी और मजे से और फिर से अपनी सनातनी प्रक्रिया को मजबूत कर लेगी...!!! यानी कि प्रकृति के सनातनी स्वरूप से आपका लालच आपको बाहर कर चुका है। आप तब तक सनातनी थे जब तक आप प्रकृति को जीते थे और प्रकृति को धारण करते थे... लेकिन अब आप पूरी तरह से सनातनी प्रक्रिया से बाहर हो चुके हैं...!!! आपका पूरा जीवन और आपका रचना संसार प्रकृति की सनातनी मूलत: से मेल नहीं खाता। वाट्सअप विश्वविद्यालय से निकला सनातनी शब्द दरअसल मात्र एक धोखा है जो खुद को दिया जा रहा है। आज  जिस सनातन की बात की जा रही है, वह राजनीति जनित धर्म के धंधेबाजों का वाट्सअप वर्जन है...इस वर्जन के अनुसार सनातन वह है जो धंधेबाजों द्वारा संचालित/निर्देशित परंपरानुसार चला आ रहा है..!!! लेकिन अब इस परंपरानिष्ठ या ऑर्थोडॉक्स धंधेबाजी को चुनौती मिलने लगी है...अगर वाकई सनातनी परंपरा यानी प्रकृतिवादी जीवन आरंभ हो जाए तो संसाधनों की ऐसी भयावह लूटपाट और धर्म के नाम पर "मारकाट का मार्केट" ही बैठ जाएगा...!!

धार्मिक ठेकेदार कितने शातिर होते हैं उसकी बानगी यह है कि अंग्रेजी हुकूमत में एक शब्द मार्केट में फेंका गया वैदिक धर्म...ये गांव-कस्बों में खूब चला...फिर आया आर्य धर्म....इसने मार्केट पकड़ी लेकिन फिर 1971-72 आते-आते एक नया प्रोडेक्ट आया हिंदू/हिन्दुत्व और 2020-22 से सनातन शब्द की जबरदस्त पैकेजिंग चल रही है.! एक विशेष तरह से डेवलप किया गया सनातनी चाहता है कि धर्म पर तर्क नहीं चलेगा, सवाल नहीं होंगें जो परंपराएं चली आ रही हैं वहीं सच है...वही सनातन है...केवल पीछे देखो..आगे देखना यानी प्रगतिशील या प्रगतिवादी होना सनातन की उनकी परिभाषा में नहीं आता..! सनातन कोई धर्म नहीं है...सनातन सत्य यह है कि नेचर के साथ एकाकार करेंगे तो बचेंगे नहीं तो कटेंगे..!!

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