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Up Kiran, Digital Desk: अमेरिका ने भारत पर व्यापार वार्ता में 'थोड़ा असहयोगी' (a bit recalcitrant) होने का आरोप लगाया है। यह टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की ओर से भारत पर टैरिफ (आयात शुल्क) बढ़ाने की धमकियां बनी हुई हैं। यह बयान दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों में चल रहे तनाव को और गहराता है।

अमेरिका की चिंताएं: क्या भारत नहीं सुन रहा?

अमेरिकी अधिकारियों के अनुसार, भारत द्विपक्षीय व्यापार वार्ता में अधिक लचीला रुख नहीं अपना रहा है। भारत द्वारा अपने घरेलू उद्योगों की रक्षा के लिए लगाए गए टैरिफ और बाजार पहुंच के नियमों को लेकर अमेरिका की चिंताएं बनी हुई हैं। ट्रंप प्रशासन की "अमेरिका फर्स्ट" नीति के तहत, अमेरिका अपने व्यापार घाटे को कम करने और अपने उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए कड़े कदम उठा रहा है, जिसमें भारत जैसे देशों पर आयात शुल्क बढ़ाना भी शामिल है।

'अमेरिका अपरिहार्य, पर कभी-कभी असहयोगी': सिंगापुर राजदूत के बयान का संदर्भ

यह भी ध्यान देने योग्य है कि हाल ही में सिंगापुर के राजदूत बिलाहारी काउसिकां ने भारत-सिंगापुर मंत्रिस्तरीय गोलमेज बैठक के दौरान अमेरिका को 'अपरिहार्य लेकिन अविश्वसनीय' बताते हुए कहा था कि 'हर देश को अमेरिका के साथ काम करने का तरीका खोजना होगा', क्योंकि उसकी नीतियां बदलती रहती हैं। हालांकि यह बयान सीधे तौर पर भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता से जुड़ा नहीं था, लेकिन यह वैश्विक स्तर पर अमेरिका की बदलती भूमिका और उसके व्यापारिक व्यवहार पर एक व्यापक चिंता को दर्शाता है, जिसे भारत भी महसूस कर सकता है।

भारत का पक्ष: राष्ट्रीय हितों की रक्षा

आम तौर पर, भारत अपने व्यापारिक रुख में अपने राष्ट्रीय हितों, घरेलू उद्योगों के संरक्षण और विकासशील देश के रूप में अपनी विशेष परिस्थितियों का हवाला देता रहा है। ऐसे में, जब अमेरिका जैसे बड़े देश व्यापार संतुलन और बाजार पहुंच को लेकर दबाव बनाते हैं, तो भारत अक्सर अपने रुख पर कायम रहता है, जिसे अमेरिका 'असहयोगी' करार दे रहा है।

क्या होगा आगे:यह आरोप-प्रत्यारोप भारत-अमेरिका व्यापार संबंधों में अनिश्चितता को बढ़ा सकता है। आने वाले समय में यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि दोनों देश इस गतिरोध को कैसे तोड़ते हैं और क्या कोई साझा समाधान निकलता है, या टैरिफ युद्ध और गहराता है।

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