
Up Kiran, Digital Desk: आज की दुनिया में, जहाँ हर तरफ़ AI यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की चर्चा है, हमारे क्लासरूम भी इस बदलाव से अछूते नहीं हैं। एक ज़माना था जब शिक्षक चॉक और डस्टर के साथ ब्लैकबोर्ड पर ज्ञान की बातें लिखते थे और छात्रों की कॉपियाँ जाँचने में घंटों बिता देते थे। आज वही शिक्षक AI-पावर्ड टूल्स, स्मार्टबोर्ड और डिजिटल असाइनमेंट के साथ काम कर रहे हैं।
यह सिर्फ़ एक तकनीक का बदलाव नहीं है, बल्कि पढ़ाने और सीखने के पूरे तरीक़े में एक क्रांति है। यह कहानी है उन शिक्षकों की, जो अपनी पुरानी यादों को सहेजते हुए आज के डिजिटल क्लासरूम में एक नया संतुलन बना रहे हैं।
ब्लैकबोर्ड की वो पुरानी यादें...
भारत के कई वरिष्ठ शिक्षकों के लिए, ब्लैकबोर्ड सिर्फ़ एक लिखने की जगह नहीं था, बल्कि उनकी भावनाओं का कैनवास था। उस पर चॉक से लिखने की आवाज़, डस्टर से साफ़ करने का तरीक़ा और बच्चों का ध्यान खींचने के लिए बोर्ड पर थपथपाना—ये सब उनकी शिक्षण शैली का हिस्सा था। उस दौर में सीखना-सिखाना एक व्यक्तिगत और मानवीय अनुभव हुआ करता था।
आज की AI वाली स्मार्ट क्लास
आज AI ने शिक्षकों के कई काम आसान कर दिए हैं। AI अब कुछ ही सेकंड में हर छात्र की ज़रूरत के हिसाब से व्यक्तिगत लर्निंग प्लान बना सकता है, ऑटोमेटिक तरीक़े से कॉपियाँ जाँच सकता है और यहाँ तक कि यह भी बता सकता है कि किस छात्र को किस विषय में ज़्यादा मदद की ज़रूरत है। इससे शिक्षकों को उन कामों से छुटकारा मिला है जिनमें बहुत ज़्यादा समय लगता था, और अब वे छात्रों पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान देने के लिए ज़्यादा आज़ाद हैं।
क्या AI शिक्षकों की जगह ले लेगा?
यह एक ऐसा सवाल है जो हर किसी के मन में है। लेकिन सच्चाई यह है कि AI चाहे कितना भी स्मार्ट क्यों न हो जाए, वह कभी भी एक इंसान की जगह नहीं ले सकता, ख़ासकर एक शिक्षक की। AI जानकारी दे सकता है, टेस्ट ले सकता है, लेकिन वह छात्रों को सहानुभूति, प्रेरणा और जीवन के वो सबक नहीं सिखा सकता जो एक अच्छा गुरु ही सिखा सकता है।
AI एक शिक्षक का सबसे अच्छा असिस्टेंट हो सकता है, लेकिन वह शिक्षक ख़ुद नहीं बन सकता। आज के शिक्षक AI को एक ताक़तवर औज़ार की तरह अपना रहे हैं ताकि वे अपनी क्लास को और ज़्यादा असरदार बना सकें।
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