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Up Kiran, Digital Desk: नई दिल्ली और मॉस्को मिलकर दिसंबर की शुरुआत में होने वाली रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की बहुप्रतीक्षित भारत यात्रा की तारीखें तय कर रहे हैं। यह दौरा 23वें भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन का हिस्सा होगा। खास बात यह है कि रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद यह पुतिन की पहली भारत यात्रा होगी।
इस दौरे से पहले रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव के भारत आने की भी संभावना है। उन्होंने हाल ही में संयुक्त राष्ट्र महासभा में इस यात्रा की पुष्टि की। लावरोव ने साफ कहा कि अमेरिका के टैरिफ भारत-रूस संबंधों को नहीं तोड़ सकते।
अमेरिका-भारत व्यापार तनाव: पुतिन की यात्रा क्यों है खास?
इस बार पुतिन की भारत यात्रा सिर्फ एक औपचारिकता नहीं, बल्कि एक राजनीतिक संदेश भी होगी। अमेरिका ने हाल ही में भारत पर 50% टैरिफ लगाकर दबाव बनाने की कोशिश की है। वजह? भारत की ओर से रूसी तेल की खरीद जारी रहना। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप का कहना है कि ये टैरिफ रूस पर युद्ध रोकने के लिए बनाए गए हैं।
लेकिन भारत इस दबाव में आने को तैयार नहीं दिख रहा। जानकारों के मुताबिक, भारत और रूस मिलकर अब एक नई रणनीति पर काम कर सकते हैं जिससे अमेरिकी प्रभाव को संतुलित किया जा सके।
व्यापार, रक्षा और तकनीक पर होगा बड़ा फैसला
शिखर सम्मेलन में सिर्फ कूटनीति नहीं, असली चर्चा होगी व्यापार, रक्षा, स्वास्थ्य और टेक्नोलॉजी जैसे अहम मुद्दों पर। दोनों देशों की रणनीतिक साझेदारी अब नई ऊंचाइयों पर पहुंच सकती है।
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पुतिन की मुलाकात चीन में हुए एससीओ शिखर सम्मेलन में हुई थी। अब यह भारत यात्रा उन चर्चाओं को आगे बढ़ाने का एक बड़ा मंच बनेगी।
भारत-रूस शिखर सम्मेलन की अहमियत क्या है?
भारत-रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन की शुरुआत 2000 में हुई थी। हर साल ये मीटिंग बारी-बारी से भारत और रूस में होती है। कोविड-19 महामारी के दौरान ये सिलसिला थमा जरूर था, लेकिन अब फिर से रफ्तार पकड़ रहा है।
यह मंच सिर्फ नेताओं की बातचीत तक सीमित नहीं रहता। इसमें दोनों देशों के बीच रणनीतिक, तकनीकी और सैन्य सहयोग को नई दिशा देने वाले समझौते भी होते हैं।