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Up kiran,Digital Desk : भारत का परमाणु कार्यक्रम सिर्फ वैज्ञानिकों या इंजीनियरों की देन नहीं है, बल्कि यह देश की जनता के भरोसे पर टिका है। यह भरोसा इस गहरी समझ पर आधारित है कि हम परमाणु ऊर्जा का इस्तेमाल पूरी सुरक्षा, पक्की ज़िम्मेदारी और खुली बातचीत के साथ करेंगे।

तो जब सरकार परमाणु ऊर्जा के लिए एक नए कानूनी ढांचे पर विचार कर रही है, तो यह सवाल पूछना लाज़मी है कि इस नए कानून से हमें क्या हासिल होगा? इसका जवाब इन तीन बातों को और मज़बूत करने में छिपा है: सुरक्षा, ज़िम्मेदारी और भरोसा।

1. सुरक्षा, जो हमारी पहली और आखिरी शर्त है

इस नए कानून का सबसे पहला और सबसे ज़रूरी काम यह सुनिश्चित करना होना चाहिए कि सुरक्षा के मामले में कोई भी समझौता न हो। इसे भारत की इस सोच की पुष्टि करनी चाहिए कि हमारे लिए सुरक्षा मानक दुनिया में सबसे ऊपर हैं। इसका मतलब है:

  • जो संस्थाएं इन नियमों की देखरेख करती हैं (नियामक), उन्हें और ज़्यादा मज़बूत, स्वतंत्र और जवाबदेह बनाना होगा।
  • समय-समय पर टेक्नोलॉजी को अपग्रेड करना और सुरक्षा की जांच को पूरी पारदर्शिता के साथ लोगों के सामने रखना होगा।

2. अगर कुछ गलत हो, तो ज़िम्मेदार कौन?

सोचिए, अगर कभी कोई परमाणु हादसा हो जाए, तो उसकी ज़िम्मेदारी किसकी होगी? हमारा मौजूदा कानून (सीएलएनडी एक्ट) इस बारे में बहुत साफ़ है। यह कहता है कि ऐसी किसी भी स्थिति में, बिना किसी लाग-लपेट के, ज़िम्मेदारी सीधे तौर पर प्लांट चलाने वाले ऑपरेटर की होगी।

नए कानून को इस व्यवस्था को और भी मज़बूत और साफ़ बनाना चाहिए ताकि कोई कन्फ्यूजन न रहे और ज़िम्मेदारी की एक स्पष्ट चेन बनी रहे।

3. भरोसा, जो सिर्फ बातों से नहीं, काम से आता है

यह एक सच्चाई है कि दुनिया भर में बेहतरीन सेफ्टी रिकॉर्ड होने के बावजूद, परमाणु ऊर्जा को लेकर लोगों के मन में अक्सर डर और गलतफहमियाँ होती हैं, जो वैज्ञानिक तथ्यों से ज़्यादा सुनी-सुनाई बातों पर आधारित होती हैं।

यह भरोसा तभी जीता जा सकता है जब हम लोगों से जुड़ें और उन्हें बताएं कि परमाणु विज्ञान सिर्फ बिजली ही नहीं बनाता, बल्कि:

  • कैंसर के इलाज (रेडियोथेरेपी) में ज़िंदगियां भी बचाता है।
  • खेती (म्यूटेशन ब्रीडिंग) में फसलों की पैदावार भी बढ़ाता है।
  • विकिरण तकनीक से पानी को भी साफ़ करता है।

जब आम नागरिक परमाणु विज्ञान के इस मानवीय चेहरे को देखते हैं, तो उनका डर भरोसे में बदलने लगता है। जब 2015 की गणतंत्र दिवस परेड में परमाणु ऊर्जा विभाग की झांकी निकली, तो यह इसी दिशा में एक सफल प्रयास था।

तो नए कानून का असली लक्ष्य क्या है?

अगर 1962 का पहला परमाणु कानून देश की 'क्षमता बनाने' पर था, तो यह नया कानून उस क्षमता को 'बड़े पैमाने पर आत्मविश्वास के साथ इस्तेमाल करने' पर होना चाहिए। यह एक ऐसे भारत की तस्वीर पेश करे जिसने मुश्किल टेक्नोलॉजी में महारत हासिल कर ली है और अपनी ज़िम्मेदारियों से दुनिया का सम्मान जीता है।

विकसित भारत की ओर एक मज़बूत कदम

आज भारत का परमाणु कार्यक्रम एक नए मोड़ पर है। हम सिर्फ बड़े-बड़े पावर प्लांट ही नहीं, बल्कि छोटे मॉड्यूलर रिएक्टर (SMRs) और थोरियम पर आधारित एडवांस्ड सिस्टम के बारे में भी सोच रहे हैं। ये टेक्नोलॉजी ऊर्जा को देश के कोने-कोने तक पहुँचा सकती है।

इसलिए, यह नया कानून एक ऐसा मज़बूत ढाँचा तैयार करे जो न सिर्फ इन नई टेक्नोलॉजी को अपनाने में तेज़ी लाए, बल्कि देश में ही रिसर्च और मैन्युफैक्चरिंग को भी बढ़ावा दे। यह एक 'विकसित भारत' की ओर बढ़ाया गया एक ज़रूरी और सोचा-समझा कदम होगा।