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Up Kiran, Digital Desk: आज की तेज़ी से भागती दुनिया में, हम अक्सर नई टेक्नोलॉजी और मॉडर्न बनने की होड़ में यह भूल जाते हैं
कि हमारी असली ताकत हमारी संस्कृति और हज़ारों साल पुराने ज्ञान में छिपी है। इसी ज़रूरी बात को मैसूर के शाही परिवार के सदस्य, यदुवीर कृष्णदत्त चामराजा वाडियार, ने बहुत ही खूबसूरत अंदाज़ में युवा इंजीनियरों को समझाया।

ज्ञान वही, जो ज़मीन से जोड़े

बेंगलुरु में एम. विश्वेश्वरैया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के दीक्षांत समारोह में बोलते हुए, यदुवीर वाडियार ने कहा, "आप चाहे कितनी भी नई टेक्नोलॉजी सीख लें, कितनी भी बड़ी सफलता हासिल कर लें, लेकिन अगर आप अपनी संस्कृति और अपनी जड़ों को भूल गए, तो उस सफलता का कोई मतलब नहीं है।"

उन्होंने युवा इंजीनियरों से कहा कि उन्हें सिर्फ मशीनें और इमारतें बनाने वाला नहीं, बल्कि समाज को समझने वाला और अपनी विरासत पर गर्व करने वाला बनना चाहिए। उनका संदेश साफ था - सच्ची प्रगति वही है जिसमें आधुनिक ज्ञान और पारंपरिक मूल्यों का संतुलन हो।

हमारी पुरानी किताबों में छिपा है भविष्य का राज़

यदुवीर ने इस बात पर जोर दिया कि हमारा स्वदेशी ज्ञान, जो वेदों, उपनिषदों और दूसरे प्राचीन ग्रंथों में भरा पड़ा है, आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना हज़ारों साल पहले था। उन्होंने कहा, "यह ज्ञान हमें सिर्फ यह नहीं सिखाता कि दुनिया कैसे काम करती है, बल्कि यह भी सिखाता है कि एक अच्छा और सार्थक जीवन कैसे जिया जाए।"

उन्होंने कहा कि हमें अपनी परंपराओं को बोझ नहीं, बल्कि एक मज़बूत नींव समझना चाहिए, जिस पर हम एक शानदार भविष्य बना सकते हैं।

उनका यह भाषण उन सभी युवाओं के लिए एक प्रेरणा है जो सफलता की तलाश में अपनी पहचान खोते जा रहे हैं। यह हमें याद दिलाता है कि असली उड़ान वही होती है, जिसमें पंख भले ही आसमान में हों, लेकिन पैर अपनी ज़मीन पर मज़बूती से टिके रहें।