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Up Kiran, Digital Desk: सावन का महीना, भगवान शिव को समर्पित एक ऐसा पवित्र समय है जब भक्त उनकी आराधना में लीन होते हैं। इस माह में कई लोग व्रत रखते हैं और सात्विक भोजन का सेवन करते हैं। इसी दौरान एक विशेष परंपरा है, जिसमें प्याज और लहसुन का सेवन वर्जित होता है। क्या आपने कभी सोचा है कि इसके पीछे क्या कारण हो सकते हैं? आइए जानते हैं धार्मिक मान्यताओं और कुछ वैज्ञानिक तर्कों के आधार पर सावन में प्याज और लहसुन से परहेज क्यों किया जाता है।

 धार्मिक मान्यताएं और तामसिक गुण: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, प्याज और लहसुन को 'तामसिक' भोजन की श्रेणी में रखा गया है। 'तामसिक' खाद्य पदार्थ वे होते हैं जो शरीर और मन में उत्तेजना, क्रोध, आलस्य और वासना बढ़ाते हैं। सावन माह में आध्यात्मिक उन्नति, भक्ति और मन की शांति पर जोर दिया जाता है। ऐसे में सात्विक भोजन (पवित्र और शुद्ध) का सेवन ही उचित माना जाता है, जो मन को शांत, केंद्रित और भक्तिमय बनाए रखने में मदद करता है। प्याज और लहसुन का सेवन ध्यान और पूजा-पाठ में बाधा डाल सकता है।

 आयुर्वेदिक दृष्टिकोण: आयुर्वेद के अनुसार, प्याज और लहसुन की प्रकृति 'गरम' होती है। ये 'रजोगुणी' और 'तमोगुणी' खाद्य पदार्थ माने जाते हैं जो शरीर में पित्त और वात बढ़ा सकते हैं। सावन में वातावरण में नमी अधिक होती है, जिससे शरीर में वात-पित्त बढ़ने की संभावना होती है। इस माह में हल्का, सुपाच्य और शरीर को शीतलता प्रदान करने वाला भोजन लेने की सलाह दी जाती है, जिससे पाचन तंत्र पर अतिरिक्त भार न पड़े और बीमारियों से बचा जा सके।

मांसाहार से जुड़ाव: प्राचीन काल से ही, प्याज और लहसुन को मांसाहारी भोजन और कुछ विशिष्ट प्रकार के पकवानों से जोड़ा जाता रहा है। सावन एक पवित्र माह है जिसमें मांसाहार पूरी तरह वर्जित होता है। आध्यात्मिक शुद्धता बनाए रखने और मांसाहार से दूर रहने का संकेत देने के लिए भी इन सब्जियों का सेवन नहीं किया जाता।

 शुद्धता और एकाग्रता:प्याज और लहसुन खाने के बाद मुंह से तेज गंध आती है। धार्मिक अनुष्ठानों, पूजा-पाठ या ध्यान के दौरान ऐसी गंध एकाग्रता भंग कर सकती है और पवित्रता की भावना को कम कर सकती है। इसलिए, आध्यात्मिक वातावरण में शुद्धता बनाए रखने के लिए इन्हें टाला जाता है।

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