
नई दिल्ली/अंकारा: भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब अर्दोआन – दो ऐसे नेता हैं जिनकी कार्यशैली, व्यक्तित्व और राजनीति को लेकर अक्सर वैश्विक विश्लेषणों में समानताओं की चर्चा होती है। दोनों नेता अपने-अपने देशों में बहुमत के साथ सत्ता में हैं, राष्ट्रवाद की भावना को बढ़ावा देते हैं, और मजबूत नेतृत्व के प्रतीक माने जाते हैं।
दोनों ही नेताओं ने परंपरागत राजनीतिक व्यवस्थाओं को चुनौती दी है। मोदी ने जहां भारतीय राजनीति में लंबे समय से चले आ रहे सत्ता समीकरणों को बदला, वहीं अर्दोआन ने तुर्की की धर्मनिरपेक्ष छवि में इस्लामी पहचान को और स्पष्ट रूप से सामने लाया है। दोनों के नेतृत्व में मीडिया, न्यायपालिका और नौकरशाही पर नियंत्रण को लेकर आलोचनाएं भी होती रही हैं, लेकिन उनके समर्थकों के लिए वे विकास, सुरक्षा और सांस्कृतिक पहचान के प्रतीक हैं।
हालांकि, समानता के बावजूद भारत और तुर्की के संबंध बीते वर्षों में तनावपूर्ण रहे हैं। कश्मीर मुद्दे पर अर्दोआन द्वारा संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान का पक्ष लेने और भारत की नीतियों की आलोचना करने से नई दिल्ली में नाराज़गी रही है। इसके जवाब में भारत ने भी तुर्की की आंतरिक राजनीति और उसकी विदेश नीति को लेकर कई मंचों पर असहमति जताई है।
इसके बावजूद, हाल के दिनों में दोनों देशों के बीच व्यापारिक संबंधों में सुधार के संकेत मिले हैं। रक्षा, ऊर्जा और निर्माण क्षेत्र में साझेदारी की संभावनाओं पर चर्चा हुई है। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि रणनीतिक और आर्थिक जरूरतें दोनों देशों को अपने मतभेद सुलझाने पर मजबूर कर सकती हैं।
भविष्य में यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या मोदी और अर्दोआन जैसे प्रभावशाली नेता कूटनीतिक समझदारी दिखाकर भारत-तुर्की संबंधों को नई दिशा दे पाएंगे, या फिर वैचारिक और भू-राजनीतिक मतभेद दोनों देशों के बीच दूरी बनाए रखेंगे।
--Advertisement--