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Up Kiran, Digital Desk: केरल के बाद अब मुंबई समेत पूरे महाराष्ट्र में मानसून की दस्तक हो चुकी है। मगर इस बार बारिश ने एक अनोखा रिकॉर्ड भी बनाया है — 107 साल में पहली बार इतनी जल्दी मानसून मुंबई पहुंचा है। सोशल मीडिया पर लोग चाय की चुस्कियों और बारिश की बूंदों का आनंद लेते दिख रहे हैं, मगर हकीकत सड़कों पर उतरते ही सामने आ जाती है जलभराव, ट्रैफिक जाम, ट्रेन लेट और ठप जनजीवन।

हर साल मानसून के मौसम में मुंबई डूबती है और हर साल वही सवाल दोहराया जाता है आख़िर क्यों नहीं बदलती मुंबई की बारिश की किस्मत। इस लेख में जानिए वो 5 बड़ी वजहें जिनके चलते हर साल करोड़ों खर्च करने के बावजूद भी बारिश में डूब जाती है देश की आर्थिक राजधानी।

1. भौगोलिक स्थिति: तश्तरी में बसी सपनों की नगरी

मुंबई की समस्या की जड़ उसकी भौगोलिक बनावट में ही छिपी है। सात द्वीपों को मिलाकर बनी यह नगरी नीचे और ऊपर की मिश्रित सतह पर टिकी है  जैसे तश्तरी में पानी भर जाए।

अंधेरी सबवे, सायन, खार और मिलन सबवे जैसे इलाके हर बारिश में टापू बन जाते हैं। चार नदियां (मीठी, ओशिवारा, दहिसर और पोयसर) और चार क्रीक शहर को घेरे हुए हैं।  मीठी नदी की चौड़ाई कई जगहों पर सिर्फ 10 मीटर रह गई है — नतीजा बारिश आते ही नदी उफान पर और आस-पास के इलाके जलमग्न। मुंबई का समुद्र तटीय शहर होना जितना रोमांटिक लगता है, प्राकृतिक जलप्रबंधन के लिहाज से उतना ही चुनौतीपूर्ण है।

2. ज्वार-भाटा का असर और ड्रेनेज गेट की मजबूरी

मुंबई में बारिश का पानी समुद्र में बहाने के लिए बनाए गए ड्रेनेज गेट्स एक समय के बाद उल्टा असर दिखाते हैं। जब ज्वार (हाई टाइड) आता है, तो समुद्र का पानी शहर में घुस सकता है। इससे बचने के लिए ड्रेनेज गेट्स बंद कर दिए जाते हैं। ऐसे में बारिश का पानी बाहर नहीं निकल पाता और शहर एक विशाल तालाब में बदल जाता है।

चौंकाने वाली बात ये है कि 45 में से सिर्फ 3 नालियों पर ही ये गेट्स हैं। बाकी नालियों से पानी उल्टा शहर में आ जाता है। छह घंटे तक जलनिकासी बाधित रहती है, और तब तक सड़कों पर ट्रैफिक फंसा रहता है, लोकल ट्रेनें लेट हो जाती हैं और लोगों की ज़िंदगी थम जाती है।

3. अंग्रेजों का ड्रेनेज सिस्टम, 21वीं सदी की बारिश

मुंबई का बड़ा हिस्सा अभी भी ब्रिटिश काल के ड्रेनेज सिस्टम पर निर्भर है। इस सिस्टम की क्षमता हर घंटे 50 से 70 मिमी बारिश को ही संभालने की है। मगर अब मुंबई में हर घंटे 200 मिमी तक बारिश होने लगी है। नतीजा? पुराने नाले ओवरफ्लो होने लगते हैं और सड़कों पर पानी भरने में कुछ ही मिनट लगते हैं।

चौंकाने वाली बात ये है कि इस सिस्टम को अपग्रेड करने के लिए 900 करोड़ रुपये से ज़्यादा खर्च किए जा चुके हैं, मगर नतीजा हर साल वही मुंबई फिर डूबी!

4. असामान्य और भारी बारिश: मौसम का बदलता मिज़ाज

पहले जो बारिश एक महीने में होती थी, वो अब कुछ घंटों में हो जाती है। क्लाइमेट चेंज के इस दौर में कभी अचानक सूखा, तो कभी भारी बारिश — ये नया पैटर्न बन गया है। इतनी तेज़ बारिश के लिए शहर की नालियां, गटर और ड्रेनेज सिस्टम तैयार नहीं हैं। नतीजा थोड़ी देर में ही पूरे शहर की रफ्तार ठहर जाती है। बारिश अब सिर्फ मौसम नहीं रही ये अब आपदा बनती जा रही है।

5. अतिक्रमण, अनियोजन और ज़मीन का गला घोंटता कंक्रीट

मुंबई में हर साल लाखों लोग बसते हैं, मगर बिना किसी शहरी योजना के। निचले इलाकों में बसी अनधिकृत कॉलोनियां बारिश में सबसे पहले डूबती हैं। ड्रेनेज सिस्टम इन जगहों में है ही नहीं। नतीजा- कुछ ही मिनटों की बारिश में पानी घरों में घुस जाता है। साथ ही मुंबई में खाली जमीनें और जलाशय बेहद कम हैं।

बारिश का पानी जमीन में रिसे इसके लिए हरी जगहों, वाटर बॉडीज़ और तालाबों की ज़रूरत होती है जो अब लगातार कम हो रहे हैं। मुंबई में अब 90% बारिश का पानी नालियों के भरोसे है यानी जल निकासी सिस्टम पर असीम दबाव।

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