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Up kiran,Digital Desk : झारखंड में घर बनाना महंगा क्यों है, इसका एक बड़ा कारण बालू की कीमतें हैं. इसी मुद्दे को लेकर विधानसभा में मंगलवार को जमकर बहस हुई. एक तरफ सरकार दावा कर रही है कि राज्य की ग्राम सभाएं आम लोगों को मात्र 100 रुपए प्रति क्यूबिक फीट (CFT) की सस्ती दर पर बालू दे रही हैं, तो वहीं दूसरी तरफ विपक्ष के विधायक ने इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया.

क्या है सरकार का दावा?

हेमंत सोरेन सरकार में मंत्री योगेंद्र प्रसाद ने सदन में बताया कि राज्य के 374 बालू घाटों का संचालन फिलहाल ग्राम सभाएं कर रही हैं और वहीं से लोगों को सस्ती दरों पर बालू मिल रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि घाटों के बेहतर संचालन के लिए माइंस डेवलपर ऑपरेटर (MDO) का भी चयन किया गया है, जिससे सरकार को कोई नुकसान नहीं हो रहा है.

विपक्ष का पलटवार- "₹100 में बालू कहां है?"

सरकार के इस दावे पर विधायक नवीन जायसवाल ने तीखा हमला बोला. उन्होंने साफ कहा कि "किसी भी जिले या गांव में लोगों को 100 रुपए CFT (यानी 200 रुपए प्रति ट्रैक्टर) में बालू नहीं मिल रहा है. यह बात पूरी तरह से गलत है."

जायसवाल ने सरकार के नए 'सैंड माइनिंग रूल्स-2025' पर भी सवाल उठाए. उन्होंने चिंता जताई कि नए नियमों के कारण झारखंड का कोई भी स्थानीय व्यक्ति बालू घाटों की नीलामी में हिस्सा ही नहीं ले पाएगा और इसका फायदा फिर से दिल्ली-मुंबई की बड़ी कंपनियों को मिलेगा.

तो बालू घाटों की नीलामी कब होगी?

सबसे बड़ा सवाल यह है कि आखिर बालू घाटों की नीलामी पर लगी रोक हटेगी कब, ताकि बालू की कीमतें नियंत्रण में आ सकें? इस पर मंत्री योगेंद्र प्रसाद ने कहा कि सरकार जल्द ही रोक हटाएगी, लेकिन इसके लिए पेसा (PESA) कानून के लागू होने का इंतजार किया जा रहा है.

आपको बता दें कि पेसा कानून को लेकर झारखंड हाईकोर्ट ने भी सरकार को फटकार लगाई है और इसे जल्द से जल्द लागू करने की तारीख बताने का निर्देश दिया है. पेसा कानून लागू होने के बाद ग्राम सभाओं को उनके क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधनों पर ज्यादा अधिकार मिल जाएंगे.

फिलहाल, सरकार और विपक्ष के दावों के बीच आम आदमी महंगी बालू खरीदने को मजबूर है. अब देखना यह है कि पेसा कानून कब लागू होता है और उसके बाद बालू की कीमतों में कोई राहत मिलती है या नहीं.