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विश्व का सबसे विशाल, सबसे पवित्र, सबसे धार्मिक और सांस्कृतिक मेला जो कि 45 दिनों तक चलता है, जिसका सनातन धर्म में विशेष महत्व है, जो 12 साल में सिर्फ एक बार आता है और जो आखिरी बार 2013 में लगा था। जी हां, आप बिल्कुल सही सोच रहे हैं। हम बात कर रहे हैं महाकुंभ मेले की जिसका आयोजन प्रत्येक 12 बरस बाद किया जाता है।

बताते हैं कि कुंभ के मेले का इतिहास कम से कम 850 साल पुराना है। माना तो यह भी जाता है कि आदि शंकराचार्य ने इसकी शुरुआत की थी। पर कुछ कथाओं के मुताबिक, कुंभ की शुरुआत समुद्र मंथन के आदिकाल से ही हो गई थी। हिंदू धर्म ग्रंथों के मुताबिक इसके इतिहास से जुड़ी तीन कहानियां प्रचलित है। लेकिन हम आपको पहली कहानी बताएंगे। 

पहली कहानी कुछ इस प्रकार है

ऋषि दुर्वासा ने जब इंद्र को खास शक्तियों के साथ एक पवित्र ग्रंथ प्रस्तुत किया तो भक्तों के राजा इंद्र ने इसे ऐरावत हाथी के सर पर रखा। रावत ने उसे फर्श पर फेंक दिया और अपने पैरों से तोड़ दिया। तब ऋषि दुर्वासा ने क्रोधित होकर इंद्र को श्राप दिया। महर्षि दुर्वासा के श्राप के कारण इंद्र और देवतागण कमजोर पड़ गए। तब दैत्यों ने देवताओं पर आक्रमण कर उन्हें परास्त कर दिया था। तब भगवान विष्णु ने देवताओं को दैत्यों के साथ मिलकर समुद्र मंथन करके अमृत निकालने के लिए कहा।

तत्पश्चात, देवता और दैत्यों ने अमृत निकालने के लिए प्रयास किया और समुद्र से अमृत कलश भी निकला। देवताओं के इशारे पर इंद्र का पुत्र जयंत कलश को लेकर उड़ गया। तब दैत्यों ने जयंत का पीछा किया और जयंत को पकड़ लिया। इसके बाद दैत्य अमृत कलश पर अधिकार जमाने लगे। अमृत कलश को प्राप्त करने के लिए देवताओं और दैत्यों के बीच 12 दिनों तक युद्ध चला। इस दौरान कलश से अमृत की कुछ बूंदें पृथ्वी के चार स्थानों पर गिरी। पहली बूंद प्रयाग में, दूसरी बूंद हरिद्वार में, तीसरी उज्जैन और चौथी बूंद नासिक में आकर गिरी। इसलिए इन चार स्थानों को पवित्र माना जाता है।

 

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