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Up Kiran, Digital Desk: बिहार की सियासी फिजा में इस समय एक नया बदलाव महसूस किया जा रहा है। राजनीतिक गलियारों में जन सुराज आंदोलन की चर्चा जोरों पर है, लेकिन इसका असर सबसे ज्यादा आम मतदाता के मन में दिख रहा है। नेता से पहले रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर अब खुद राजनीतिक मैदान में उतर चुके हैं और उनकी बेबाकी से बिहार का पारंपरिक चुनावी समीकरण चुनौती में पड़ता नजर आ रहा है।
एक इंटरव्यू में किशोर ने खुद ही अपनी पार्टी को 'वोट काटने वाली' करार दिया, लेकिन यह भी जोड़ा कि जन सुराज उतने वोट काटेगा कि सत्ता तक पहुंच जाएगा। ये बयान जितना चौंकाने वाला था, उतना ही साफ भी कि वे खुद को अब छोटे खिलाड़ी के रूप में नहीं, बल्कि एक निर्णायक विकल्प के तौर पर पेश कर रहे हैं।
छोटे दलों के अस्तित्व पर संकट
जन सुराज की बढ़ती गतिविधियों से सबसे पहले छोटे क्षेत्रीय दलों की स्थिति डगमगाई है। गांव-गांव में होने वाली सभाओं और पदयात्राओं के जरिए पार्टी ने आम जनता के बीच सीधी पैठ बनाई है। किशोर का दावा है कि छोटे दलों के समर्थक और कार्यकर्ता अब उनकी ओर मुड़ चुके हैं, जिससे इन पार्टियों का राजनीतिक अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। बिहार की सियासत अब तीन ध्रुवों में बंटती दिख रही है – राजद गठबंधन, भाजपा-जदयू और अब जन सुराज।
जेडीयू और भाजपा को भी नहीं छोड़ा
प्रशांत किशोर ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी को लेकर भी भविष्यवाणी कर दी कि अगली बड़ी सेंध जेडीयू में लगने जा रही है। उनके मुताबिक, जेडीयू का परंपरागत वोट बैंक तेजी से जन सुराज की ओर आकर्षित हो रहा है। भाजपा के बारे में भी उन्होंने कहा कि दो तरह के लोग – एक जो स्थानीय नेतृत्व से नाराज़ हैं और दूसरे जो राज्य स्तर पर अलग नेतृत्व चाहते हैं – अब जन सुराज को विकल्प मान रहे हैं।
मुस्लिम वोटर बदलेंगे दिशा?
एक अहम बात जो इस चर्चा में सामने आई, वो है मुस्लिम मतदाताओं की भूमिका। किशोर के अनुसार, यदि मुस्लिम समुदाय को यह संकेत मिलता है कि एनडीए का आधार कमजोर हो रहा है और कोई नया ताकतवर विकल्प उभर रहा है, तो वे भी पारंपरिक वोटिंग पैटर्न छोड़कर नई दिशा में जा सकते हैं। यह इशारा बिहार में मुस्लिम वोट के लंबे समय से चले आ रहे झुकाव में बदलाव की संभावना को दर्शाता है।
जनता की नजर में ‘जन सुराज’
जन सुराज की रैलियों और सभाओं में जुटती भीड़ इस ओर इशारा कर रही है कि लोग बदलाव चाहते हैं। किशोर की भाषाशैली, साफ-साफ बात रखने का अंदाज़ और ज़मीनी मुद्दों को प्राथमिकता देना उन्हें जनता के बीच एक अलग पहचान दिला रहा है। उनके अभियान की पारदर्शिता और पुराने दलों की विफलताओं को उजागर करने वाली रणनीति ने बिहार की जनता के मन में हलचल मचा दी है।
चुनावी नतीजों पर असर?
बिहार की राजनीति में जन सुराज के बढ़ते प्रभाव ने यह सवाल खड़ा कर दिया है कि क्या यह आंदोलन सिर्फ शोर मचाएगा या वास्तव में सीटें भी जीत पाएगा? पारंपरिक दलों के वोट बैंक में सेंधमारी का असर निश्चित रूप से दिखेगा, लेकिन जन सुराज किस हद तक बाज़ी पलटेगा, यह चुनावी नतीजे ही बताएंगे।