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(पवन सिंह)
सामाजिक और राजनैतिक आन्दोलनों को आरंभ करने का श्रेय हमेशा बिहार और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों को जाता रहा है लेकिन "धर्म की गोबरहिया शक्ति" ने इन दोनों की राज्यों की चेतना को मार दिया है।‌ अगर व्यंग्यात्मक लहजे में लिखूं तो ...महाराष्ट्र में 'राजीव कुमार" (मुख्य निर्वाचन आयुक्त CEC) वर्सेज विपक्षी दलों के बीच हुए विधानसभा चुनाव को लेकर जिस तरह से मराठों ने घरों से निकलना शुरू किया है, वह ये सवाल पैदा करता है कि क्या निकट भविष्य में मराठा ईवीएम को लेकर कोई बड़ा आंदोलन शुरू करेगा..??? क्या भारतीय संविधान की रक्षा, भारतीय नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा और ईवीएम के जरिए अब डंके की चोट पर खुलेआम की जा रही वोटों की डकैती से मराठा निपटेगा?  उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे गोबरपट्टी राज्यों से अब किसी बड़े राजनैतिक व सामाजिक आंदोलन की उम्मीद करना केवल बेईमानी है। 

महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव संपन्न होने और परिणाम आनू के बाद गांवों व कस्बों से हजारों मराठा सड़कों पर आ गये..। सत्ता के चरणों में गर्दभ के मानिंद लोटने वाले न्यूज चैनलों ने तो कुछ न दिखाया लेकिन सोशल मीडिया पर विरोध प्रदर्शन खूब वायरल हुए। 

महाराष्ट्र और मराठा खुद को एक बड़े आन्दोलन के लिए ज़हनी तौर पर अपने को तैयार कर रहे हैं। महाराष्ट्र के प्रख्यात सामाजिक कार्यकर्ता बाबा आढाव ने अनशन आरंभ कर दिया है। हालांकि, इस बड़े आंदोलन को खड़ा होने में थोड़ा वक्त लगेगा क्योंकि अप्रत्यक्ष रूप से संघ पोषित अन्ना हजारे ने सामाजिक व राजनैतिक आन्दोलनों  के विश्वास को ठगा है और उसे फिर से बहाल होने समय लगेगा। सामाजिक कार्यकर्ता बाबा आढाव ईवीएम के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं और उनसे बीते 30 नवंबर, 2024 को शरद पवार व अजित पवार पुणे में मिल चुके हैं। उद्धव ठाकरे जल्द ही मुलाकात करेंगे। बाबा आढाव का आंदोलन पूणे में शुरू हो चुका है। महाराष्ट्र में सामाजिक कार्यकर्ता बाबा आढाव का जबरदस्त प्रभाव है। बाबा का जन्म 1 जून 1930 को पुणे सिटी में हुआ था। बाबा 1943 से 1950 तक राष्ट्र सेवा दल के आयोजक रहे हैं। उन्होंने 1952 में खाद्य मूल्य बढ़ोत्तरी के खिलाफ सत्याग्रह किया था और पहली बार जेल गये। बाबा ने वर्ष, 1955 में हडपसर महाराष्ट्र स्वास्थ्य मंडल में औषधालय "साने गुरुजी अस्पताल" की स्थापना की और  गोमांतक मुक्ति आंदोलन में भाग लिया‌। बाबा का सामाजिक विषयों को लेकर आन्दोलनों का बड़ा लंबा इतिहास रहा है। बाबा, नाना पेठ से पुणे नगर निगम के लिए भी चुने गए लेकिन पूर्वी जल आपूर्ति के मुद्दे को अनुचित बताते हुए इस्तीफा दे दिया। 

उन्होंने 1959 'झोपड़ी संघ' का गठन, झुग्गी उन्मूलन पुनर्वास आंदोलन किया।  1963 में महाराष्ट्र राज्य बांध और परियोजना प्रभावित किसान पुनर्वास परिषद की स्थापना में भाग लिया।  'एक गांव, एक जल' आंदोलन जबरदस्त रहा। 
उन्होंने 1971 में एम. फुले समता प्रतिष्ठान की स्थापना की।   1974 में 'प्रगतिशील सत्य-साधक' त्रैमासिक प्रकाशन आरंभ करते हुए देवदासी उन्मूलन और पुनर्वास आंदोलन चलाया व 1975 में यरवदा जेल में 14 महीने 'मीसा' के तहत रहे। वर्ष, 1982 में पुणे में राष्ट्रीय एकता परिषद की स्थापना की और देशपांडे की अध्यक्षता में विशाल सम्मेलन किया गया। 1984 में भिवंडी दंगे व चक्रवात पीड़ितों और मराठवाड़ा भूकंप पीड़ितों के लिए पुणे से राहत राशि इकट्ठा की। बाबा असमानता उन्मूलन सम्मेलन के मंच पर विभिन्न परिवर्तनकारी संगठनों को एक साथ लाये। उन्होंने पुणे में 'रिक्शा पंचायत' बनाने के लिए 50 हजार ऑटो ड्राइवर को एकत्र किया और संसद ने इस संबंध में एक विधेयक पारित करवाया और देश के 37 करोड़ श्रमिकों के लिए 'सामाजिक सुरक्षा कानून' के आंदोलन को बल दिया  रेहड़ी-पटरी वालों, मैनुअल मजदूरों आदि के लिए जारी निरंतर आवाज उठाने से उनका कल्याण हुआ।

मराठाओं का लड़ने का एक लंबा इतिहास रहा है और अपने संघर्ष को मुकाम तक पहुंचाये बिना वापस लौटना उन्हें गवांरा नहीं है। राहुल गांधी और कांग्रेस को चाहिए कि वह ये मोहब्बत की दुकानदारी की फिजूल की भावनात्मक "लपरझंडी टाइप्स" यात्राओं को रोके क्योंकि सत्ता में इस‌ वक्त किसी राजनीतिक दल या राजनीतिक सोच वाले दल या शासकों की सरकार नहीं है बल्कि घोर साम्प्रदायिक, गिरोहबाजों और अपराधियों की सरकार है जिसे उद्योगपति फंड दे रहे हैं। इनसे भावनात्मक रूप से लड़ने में कुछ नहीं मिलेगा।  मैंने पहले भी लिखा है कि भाजपा से विपक्ष की कोई लड़ाई ही नहीं बनती...असल लड़ाई राजीव कुमार और उनकी ईवीएम से है...अगर इतनी सी बात भी भारत के मुख्य विपक्षी दल को समझ नहीं आ रही है तो आप मोहब्बतों की दुकानें खोलते रहिए....आपके ग्राहक कभी नहीं आयेंगे। क्योंकि या तो वे वोटर लिस्ट से बाहर होंगे या फिर उन्हें पुलिस मतदान स्थल तक जाने नहीं देगी... सुप्रीमकोर्ट से उम्मीद भी बेईमानी ही है...!! लिहाजा बाबा आढाव ने आन्दोलन की आग सुलगाई है और समय रहते दक्षिण से उत्तर तक और पूर्व से लेकर पश्चिम तक के सभी नेताओं, छात्रों, किसानों, जवानों, सैनिकों...सभी को साथ देने की जरूरत है...। मोहब्ब्त उसे समझाईं जाती है जिसमें संवेदना हो...।

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